मातृत्व की छाया – डॉ मंजू लोढ़ा
मातृत्व की छाया – डॉ मंजू लोढ़ा आज मन बहुत व्याकुल है। मैं अपने आप से प्रश्न कर रही हूं कि क्या सचमुच मेरी याददाश्त कमजोर हो रही है? 39 वर्षो, में पहली बार ऐसा हुआ कि मैं तुम्हारी पुण्यतिथि भूल गई। यह सोचकर ही मन सिहर उठता है। लेकिन शायद वजह यह है कि मैं तो हर रोज तुमसे मन ही मन बातें करती हूं, इसलिए कभी लगता ही नहीं कि तुम मुझसे दूर हो। तुम तो यहीं हो, मेरे आसपास, मेरे भीतर। मां... यह शब्द ही जीवन का सबसे मधुर संगीत है। तुम्हारा नाम लेते ही मन में एक अद्भुत शांति और खुशी उतर आती है। और जब मां तुम जैसी हो — सीधी, सच्ची, सरल और सेवा-भावी — तो लगता है कि पिछले जन्मों में मैंने जरूर बहुत पुण्य किए होंगे, जो इस जन्म में तुम्हें मां के रूप में पाया। तुम छोटी-सी उम्र में हमें छोड़कर चली गईं। केवल 52 साल की आयु में ईश्वर ने तुम्हें अपने पास बुला लिया। शायद भगवान को भी अच्छे और निर्मल आत्माओं की जरूरत होती है। लेकिन मां, तुम्हारा स्नेह, तुम्हारा आशीर्वाद, तुम्हारी छाया आज भी हमारे चारों ओर फैली हुई है। आज भी जब कोई समस्या आती है, मैं मन ही मन तुमसे बात कर लेती हूं और समा...