लोकतांत्रिक देश में क्या न्यायपालिका से प्रश्न करना वर्जित है?प्रोफेसर शांतिश्री धुलिपुड़ी, कुलपति, जेएनयू"लोकतंत्र तब फलता-फूलता है जब इसकी संस्थाओं को हमेशा जांच और पारदर्शिता के दायरे में लाया जाता है।"
लोकतांत्रिक देश में क्या न्यायपालिका से प्रश्न करना वर्जित है? प्रोफेसर शांतिश्री धुलिपुड़ी, कुलपति, जेएनयू "लोकतंत्र तब फलता-फूलता है जब इसकी संस्थाओं को हमेशा जांच और पारदर्शिता के दायरे में लाया जाता है।" लोकतंत्र वाद-संवाद पर आधारित होता है। राज्य की संस्थाएँ लोकतंत्र की नींव हैं। लेकिन वर्तमान समय में न्यायपालिका संवाद और विचार विमर्श पर कम, अपनी खुद की प्रतिध्वनि के रूप में ज्यादा काम कर रही है। उप-राष्ट्रपति महोदय ने हाल ही में दिए गए वक्तव्य में सुप्रीम कोर्ट को कहा कि उसने राष्ट्रपति को राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर समय सीमा के भीतर कार्य करने का निर्देश देकर विवाद पैदा कर दिया है। इसके बाद जो हुआ, वह एक संगठित नैतिक आक्रोश था। दुखद है कि यह बहस संविधानिक मुद्दे पर नहीं, बल्कि न्यायपालिका पर सवाल उठाने के दुस्साहस पर केंद्रित हो गई। न्यायपालिका ने हाल ही में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे एक न्यायाधीश की सिर्फ स्थानांतरण करके खानापूर्ति कर दिया, इससे जनमानस में आक्रोश बढ़ा है। भारत एक संसदीय लोकतंत्र है, जिसकी संसदीय संप्रभुता है। यहां कोई भी ...