उत्तर भारतीय संघ के शिल्पकार मिठाईलाल सिंह ने पूरे किए जीवन के 94 बसंतसमाज के साथ-साथ शिक्षा जगत में भी जगाई अलख

उत्तर भारतीय संघ के शिल्पकार मिठाईलाल सिंह ने पूरे किए जीवन के 94 बसंत
समाज के साथ-साथ शिक्षा जगत में भी जगाई अलख 

मुंबई। उत्तर भारतीय समाज के गौरव कहे जाने वाले, उत्तर भारतीय संघ के पूर्व अध्यक्ष समाजसेवी मिठाई लाल सिंह ने आज अपने जीवन के शानदार 94 बसंत पूरे कर लिए। अपने प्रेरणादायक जीवन से उन्होंने लगातार उपलब्धियों का वरण किया। दी प्रताप कोआपरेटिव बैंक के संस्थापक, महाराणा प्रताप सेवा मंडल के अध्यक्ष, दयानंद वेदिक विद्यालय एंड जूनियर कॉलेज मुलुंड ,माटुंगा और चारकोप के अध्यक्ष के रूप में उनके कार्यों और व्यक्तित्व का प्रकाश लगातार समाज को  मिलता रहा है।  उत्तर भारतीय समाज के सबसे पुराने और सबसे मजबूत संगठन उत्तर भारतीय संघ के विकास की कहानी में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले मिठाईलाल सिंह हमेशा याद किए जाते रहेंगे। उत्तर भारतीय संघ के संघर्षपूर्ण प्रारंभिक दौर में  संस्थापक अध्यक्ष के रूप में यादगार पारी खेल चुके स्व  शुद्धन सिंह, के छोटे भाई मिठाईलाल सिंह ने  उत्तर भारतीय संघ के अध्यक्ष के रूप में मजबूत और रचनात्मक पारी खेली। दादर में संचालित उत्तर भारतीय संघ के छोटे से कार्यालय को बांद्रा पूर्व के बीकेसी परिसर में बने विशाल कार्यालय तक पहुंचाने में मिठाईलाल सिंह की अति महत्वपूर्ण और प्रभावशाली भूमिका रही। उनके कार्यकाल में ही बांद्रा पूर्व की  जमीन का सौदा तय हुआ जो कालांतर में एक विशाल भवन के रूप में तब्दील होता दिखाई दे रहा है। ओमप्रकाश पांडे, धर्मेंद्र चतुर्वेदी जैसे अनेक वरिष्ठ उत्तर भारतीय समाजसेविवों की माने तो मिठाईलाल सिंह ने ही उत्तर भारतीय संघ की नई ऊंचाइयों की आधारशिला रखी। बैंक और स्कूल के माध्यम से मिठाईलाल सिंह ने हजारों उत्तर भारतीयों को नौकरियां दिलाकर उनकी घरों को रोशन किया।अदम्य इच्छाशक्ति और सकारात्मक सोच रखने वाले मिठाईलाल सिंह ने हमेशा उत्तर भारतीय समाज को संगठित और मजबूत करने का काम किया।मिठाईलाल सिंह उत्तर प्रदेश की धरती के वे लाल हैं, जिनकी प्रतिष्ठा और शोहरत से ना सिर्फ उनका पूरा परिवार धन, वैभव, ज्ञान और शक्ति से भरपूर है, अपितु संपूर्ण उत्तर भारतीय समाज को उन पर अभिमान है। सादा जीवन और उच्च विचार में विश्वास रखने वाले मिठाईलाल सिंह, गांधीवादी परंपरा के रूप में देखे जाते हैं। संघर्षों से उन्होंने कभी हार नहीं मानी है।

राह संघर्ष की जो चलते हैं।
वही सूरज बनकर निकलते हैं।।

मिठाईलाल सिंह ने अपने जीवन में हमेशा रोशनी बिखेरने का काम किया। बुझे हुए दीपक में तेल भरकर उसे जलाने का काम किया। समाज के साथ-साथ शिक्षा जगत में भी उन्होंने अभूतपूर्व कार्य किए। दयानंद वैदिक विद्यालय उनकी भारत की सनातन संस्कृति से गहरी आस्था की अभिव्यक्ति है। मिठाईलाल सिंह ओजस्वी और तेजस्वी व्यक्तित्व के धनी हैं। विनम्रता और शालीनता के परिधान के बीच उनके चेहरे की चमक हमेशा विद्यमान रहती है।

     (उमेशप्रताप सिंह की ✒️ से)

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