" माॅं की कोख से "

" माॅं की कोख से "
तू मैया है मेरी मैं बिटियाॅं हूँ तेरी
 फिर काहे मोसे बिछोड़ा करति है 
 सींचा है तूने माँ बूॅंद बूॅंद से 
पौधा लगाया तूने अपने ही खून से
 फिर काहे मेरी जड़ को काटति है 
तू मैया....


बेटा होता जनम तू दिलाती 
मोकू दुनिया काहे न दिखाती 
काहे तू मोसे भेद-भाव करति है 
मैं शब्द हूँ तेरा तू अर्थ है मेरा 
जमाने के डर से तू क्यों 
फिर नि:शब्द रहति है 
 तू मैया है...

 बेटी बिना ये दुनिया अधूरी 
फिर काहे मैया तेरी मजबूरी 
कौन से तू मन की बात करति है 
अपनी परछाई से तू दूर भागति है
फिर काहे तू आँखों में पानी भरति है
 तू मैया...


अनदेखी अनजान मासूम सी मैं
 स्पर्श करके मुझे जान लो तुम 
न अपराध मोसे हुआ है अभी कोई 
फिर काहे मेरा खून करति है 
बिना गलती के मोहे सजा क्यो मिलति है 
तू मैया ...

एक दिन दुनियाॅं बेटी पे गर्व करेगी
 अपनी गलती पर अफसोस करेगी
 मिट जायेगी बेटी सदा इस जहाँ से
 फिर काहे तू बहू की पुकार करति है 
मैं मान हूँ तेरा सम्मान हूँ तेरा 
काहे तू अपनो अभिमान तोड़ति है
तू मैया...

एक दिन मैं इतिहास रचाऊंगी 
बेटा बेटी का भेद समझाऊँगी 
आने तो दे संसार में मोय तू
 पढूंगी लिखूंगी नाम रोशन करूँगी 
फिर काहे तू दुनियाॅं से डरति है 
काहे तू अपनी गोद सूनी करति है 
तू मैया...

खुशी सिंह
आगरा

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