*मजदूर और विज्ञान......!*
*मजदूर और विज्ञान......!*
अपने समाज में मजदूरों का....!
विज्ञान के सिद्धांतों से,
अच्छा-खासा....रिश्ता-नाता है....
देखो तो सही मित्रों....
डार्विन का सिद्धान्त....!
योग्यतम की उत्तरजीविता...
दुनिया भर को भाता है...
वहीँ मजदूर खुद को....
योग्यतम सिद्ध करने में ही....!
जीवन भर मरा जाता है....
यहाँ....मजदूरों को....!
परजीवी होने का हक नहीं,
सहजीवी हो जाना....
उनके बस की बात नहीं...
बिना श्रम के यदि दिन गया तो,
कटती उसकी रात नही....
सुबह घर से जाना...और..शाम में..
वापस उसी घर में लौट आना....!
मतलब जिंदगी का उसके,
परिपथ बन्द ही तो है....
किया गया कार्य शून्य ही है...
मित्रों...इनकी मजदूरी के बारे में...
सबको अच्छे से पता है....
श्रम और कार्य के समानुपाती..और..
गालियाँ...सादगी और सरलता के...
ठीक व्युत्क्रमानुपाती होती हैं....
मजदूर....शायद....
जड़त्व के नियम का प्रतिपादक,
त्वरण और मंदन का ज्ञाता,
क्रिया और प्रतिक्रिया के नियम का..
मौन पालन करने वाला होता है...
नाभिकीय विखण्डन की तरह...!
होता है उसके शरीर का क्षरण...
और नाभिकीय संलयन की हसरत,
आजीवन रखता है...मन में कायम...
शीशे में कभी भी....नहीं देख पाता है
अपना वास्तविक प्रतिबिम्ब....
शायद किस्मत में ही उसके लिखा है,
आभासी चेहरा और आभासी बिम्ब...
बारिश,सर्दी,गर्मी और धूप...हमेशा ही..
धनात्मक उत्प्रेरक मिलते रहे....
ऋणात्मक उत्प्रेरक....विधाता ने दिए
गरीबी और बीमारी के रूप में....
मित्रों....यह तो हुई....!
विज्ञान के सिद्धांतों पर....
मजदूरों की बात.....पर...
इन सबसे अलग प्यारे....
गौर से देखो तो....!
काबिले-तारीफ होता है मजदूर...
जो ताउम्र....दो जमा दो ...
चार ही जानता है....
संख्या के आगे वह....!
दशमलव लगाना...जानता ही नहीं...
प्रतिशत से तो कभी सटता ही नहीं...
पूर्णांक की परिभाषा से परे...वह...
लाभ-हानि जानता भले है....पर...!
लाभांश का उसे पता नहीं....
शायद इसी कारण.....!
दुनियावी ब्याज की भरपाई में....
कमर उसकी....झुकती जाती है...
और एक दिन गुरुत्व केन्द्र उसका,
कई-कई इंच अन्दर चला जाता है....
मित्रों....अब यह आप पर है...कि..
मानो या न मानो....कि मजदूरों का....
विज्ञान के सिद्धांतों से....!
अच्छा-खासा....गहरा सा नाता है....
अच्छा-खासा....गहरा सा नाता है....
रचनाकार....
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ
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