*भारतीय इतिहास के वो प्रमुख आंदोलन जो असफल रहे*

*भारतीय इतिहास के वो प्रमुख आंदोलन जो असफल रहे*
       भारतीय इतिहास में कई आंदोलन हुए|कुछ खूनी हुए तो कुछ शांति पूर्वक हुए|जिसमें शांतिपूर्वक जो हुए अधिकतर सफल हुए|और सरकार को घुटने पर ले आये|जिसमें जे पी जी द्वारा आहूत आंदोलन व अन्ना आंदोलन प्रमुख है|खूनी आंदोलन एक ही चला जो लगभग दो सौ वर्ष के आस पास चला,जिसे हम आजादी का आंदोलन कहते है|वह भी लम्बी लड़ाई के बाद सफल हुआ|और भारत आजाद हुआ|हालांकि इस दौरान कई असफल आंदोलन भी हुए|जिसमें सिपाही विद्रोह,असहयोग आंदोलन,नील आंदोलन, मोपला व खिलाफत आंदोलन|मोपला व खिलाफत आंदोलन कहने को तो अंग्रेजों के खिलाफ थे|मगर लक्ष्य बनाये भारतीय,खासकरके हिन्दू,जिससे आंदोलन असफल हुए|
        आजादी के बाद भी कई आंदोलन हुए जिसमें कम्पनी आंदोलन जो खूनी था|और बुरी तरह असफल रहा|इसी असफल आंदोलन के चलते देश में बेरोजगारी की बाढ़ आई,जो आजतक बनी हुई है|उसके पहले कामगार ढूँढ़े जाते थे|अब काम ढूँढ़े जा रहे हैं|इसके बाद भी कई असफल आंदोलन हुए हैं,जिसमें जान माल की बड़ी हानि हुई मगर सफल नहीं हुए|इन असफल आंदोलन से देश की बड़ी दुर्गति हुई|देश पिछड़ता गया|और आंदोलनजीवी विदेशी कुचक्र में फॕसकर देश की ऐसी तैसी करते रहे|जिसमें मेघा पाटकर द्वारा छेड़ा गया नर्मदा आंदोलन भी था|जो कई वर्षों तक देश को आगे बढ़ने से रोंके रहा|
        फिर एक आंदोलन सरकार द्वारा लाये गये सी ए ए बिल के विरोध में लोगों में भ्रम पैदाकर  एक खास वर्ग द्वारा लगभग छ:महीने तक दिल्ली को बंधक बना कर रखा|जो शाहीन बाग के नाम से खूनी और असफल आंदोलन के रूप में अपना नाम दर्ज कराया|जिसका समर्थन तमाम देश विरोधी मांसिकता रखने वालों ने बढ़ चढ़ कर किये|असफल इसलिए हुआ कि आंदोलन की नींव ही जर्जर थी|यदि अन्ना और जेपी जैसी मजबूती होती तो अवश्य सफल होती|मुद्दाविहीन और देश विरोधी आंदोलन कभी सफल नहीं होते|न हुए हैं न हो रहे हैं और न होंगे|
      इसी कड़ी में बर्तमान में शायद आजादी के बाद का सबसे लम्बा आंदोलन कतिथ किसान आंदोलन चला|जिसमें किसानों के हित को अनदेखा करके आंदोलन किया गया|किसान के नाम से सरकार को खूब ब्लैकमेल किया गया|इतना ब्लैकमेल किया गया कि सरकार को वे तीनो कानून जो किसान हितैषी थे,वापस लेने पड़े|फिर भी दलाल कथित किसान हितैषियों कीऔर देश विरोधियों की मंशा पूरी नहीं हुई और आंदोलन को खींचते रहे|और वह माँगे माँगते रहे जो जान रहे थे कि पूरी नहीं होगी|शाहीन बाग वाली नौटंकी होती रही|आंदलनजीवियों व देश विरोधी मांसिकता वाली देशी विदेशी शक्तियाँ व कुबुद्धिजीवी करते रहे|अपनी स्वार्थ सिद्धि में शिद्दत से लगे रहे|और देश को लम्बे समय तक बंधक बनाये रहे|जबकि इस आंदोलन को असल किसानों का रत्ती भर भी समर्थन नहीं था|यदि होता तो किसान खेत में नहीं इनके साथ आंदोलन में बैठा रहता|खेती बारी सब ठप्प होती|और सरकार को इनकी माँगे माननी ही पड़ती|क्योंकि सरकार की बड़ी कमजोर नस इस बार पकड़ रखी थी|जिसका इन आंदोलन जीवियों को लाभ भी मिल रहा था|मगर आंदोलन को समर्थन देने वाला घड़ियाल जिसके बूते आंदोलन चल रहा था|एक दिन भूखा हो गया|और आंदोलन को ही निगल गया|जितने कतिथ किसान नेता थे सबको जेल के भीतर ठूँस दिया|जो भाड़े के थे भाग लिए|इस तरह से यह आंदोलन भी असफलता का मुहर लगवा के सम्पन्न हो गया|
       मजे की बात यह रही कि इस तथा कथित किसान आंदोलन के जितने भी कुबुद्धिजीवी,नेता अभिनेता थे सबके सब सुमड़ी में चले गये|जिस बर्बरता से पंजाब सरकार ने अपने द्वारा बनाये गये किसानों को घसीट कर और डंडा मारकर शम्भू बार्डर से हटाई है,वह कार्य तो कत्तई ठीक नहीं था|फिर भी उपरोक्त समर्थक कहाँ गायब हो गये, आज तक पता नहीं चल रहा|जो लोग रोज अपनी आँसुओं से एक नया समंदर बना रहे थे,वे उस दिन कौन सी माँद में जाकर छुपे कि आज तक निकल ही नहीं पा रहे|तब किसानों के लिए इतना रो रहे थे जब किसान सभी वीआईपी सुविधाओं से सम्पन्न देश को बंधक बनाये थे|जब किसान लठियाये जा रहे थे,घसीट घसीट कर जेलों में ठूँसे गये,तब ये कुबुद्धिजीवी देश विरोधी किसान विरोधी नेता अभिनेता कहाँ गये|क्यों उन्हें पंजाब सरकार की बर्बरता नहीं दिखी|क्यों चूँ तक नहीं बोले|क्या इनकी आँखों का समंदर सूख गया,जो कुछ दिन पहले निर्वाध रूप से किसानों के लिए बह रहा था|
        इस असफल किसान आंदोलन से एक बात तो साबित हो गई कि यह किसान आंदोलन था ही नहीं|यह देशविरोधियों द्वारा प्रायोजित कुछ सत्ता लोभियों द्वारा आयोजित किया गया था|जिसमें सत्ता हांसिल करने भूख थी|और जो अभिनेता खिलाड़ी आदि इहमें कूदे थे वह भी पैसा बनाने के लिए|करोड़ों रूपये लेकर कथित किसान समर्थक बनके ट्वीट करते थे|इनको न किसान से मतलब था न ही आंदोलन से|ए सबके सब पैसा बनाने में लिप्त थे|और कथित किसान हितैषी बने घड़ियाली आँसू बहा रहे थे|जिसका जवाब देश की प्रबुद्ध जनता चुनाव दर चुनाव इनके मुँह पर अपनी वोट रूपी जूती से मारकर देती रही|इस असफल  आंदोलन से यह भी साबित हो गया कि सरकार द्वारा लाया गया वह तीनों कानून किसान हितैषी और दलाल देशविरोधियों के लिए घातक था|इसीलिए सरकार सफल हुई और आंदोलन जीवी असफल|
पं.जमदग्निपुरी

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