*खरी - खरी : इतिहास बदलनें के लिए दुबे तिवारी लिख लो भईया...*
*खरी - खरी : इतिहास बदलनें के लिए दुबे तिवारी लिख लो भईया...*
पंकज सीबी मिश्रा / पत्रकार जौनपुर
यदि आपको लगता है कि मुस्लिम समाज बहुत कट्टर है, बहुत जागृत है और हिंदू समाज जागृत नहीं है तो यह याद रखिए कि धर्म को सदैव सत्ता और उसकी तलवार का साथ मिला तभी वह हावी हुआ जबकि हिंदूत्व तो अभी शुरू हुआ माना जा रहा और इतिहास अभी हिंदू बनना भर शुरू हुआ है। जौनपुर के केराकत में डेहरी गांव के दुबे, तिवारी बने मुसलमानो को अखाडा परिषद सम्मानित करेगा। आपको बता दें प्राप्त सूचना और सूत्रों के अनुसार अखाड़ा मंच, सरनेम बदलने वाले लोगों को देश-विदेश से मिल रही है धमकियां के बीच हिंदू बने नौशाद अहमद दुबे ने कहा कि धमकियों से डर नहीं लगता है मगर चिंता जरूर है। इसी सबके बीच कुंभ मेले से एक ऐसी खबर निकल कर आई जिसको लेकर डेहरी समेत जनपद में खुशी का माहौल छा गया। उदासीन अखाड़ा के महंत महेंद्र दास बड़ा ऐलान करते हुए कहां की डेहरी गांव में सरनेम बदलने वाले लोगों को उदासीन अखाड़ा सम्मानित करेगा, जल्द ही उन लोगों को निमंत्रण पत्र मिल जाएगा। भारत के मुसलमान क्या कहीं अरब के रेगिस्तान से ऊंटों पर बैठ कर आए हैं या फिर केंद्रीय एशिया से खच्चरों पर चढ़कर? नहीं ये सब यहीं की पैदाइश हैं, आप अपने हिंदूपन पर विश्वास रखिए, धैर्य और संयम रखिए, जब हम मंदिर से बदले गए मस्जिदों को वापस ले सकते हैं तो ये भी अपने जनबल में हैं। यह मत सोचिए कि हिंदुत्व की विचारधारा कहीं मिटने वाली है। यह विदेशी पैसों से पैदा किया गया प्याली में तूफ़ान या फिर गमले में उगा फूल नहीं है यह संस्कार है । इस विचारधारा को लोग अपने जीवन से सींच रहे हैं। यह आगे बढ़ेगी, निरंतर इसमें कसाव बढ़ता जाएगा। यह क्रांति भी नहीं है, यह संक्रांति है, यह समय के साथ होकर रहेगा। यह इसलिए नहीं होगा कि यह हमारी जिद है, बल्कि इसलिए होगा क्योंकि यह इस धरती की प्राकृतिक, स्वाभाविक और विकसित विचारधारा है। एक दूसरे को प्रेरित करिए, भगदड़ का हिस्सा मत बनिए, संयम और धैर्य रखिए, आत्महत्या से बचिए, जो विचारधारा फ़ायदे की बनती जाती है, अंततः समाज उसी को अपनाता है। हम अपने हिंदुत्व को इतना सहज, सरल और सर्वग्राही बनायें कि लोग इसको अपनाकर स्वयं में सुधार और सम्मान देखें। अनावश्यक परेशान होने की कहीं कोई आवश्यकता नहीं है। रही बात उनके 56 देशों की तो यह जान लीजिए कि उनके 56 देशों की कुल सेना अकेले भारत से भी कम है। और आप जिस दिन संख्या ठीक से गिनना सीख जाएँगे और बुद्ध को भी अपना मान लेंगे, आप भी गिनकर देखिए कि आपके कितने देश होते हैं।पिछले 800 वर्षों से इस राष्ट्र को कभी गोरी ने लूटा, कभी ग़ज़नी ने, कभी गुलामों ने, कभी लोदियों ने, कभी मुग़लों ने, कभी अंग्रेज़ों ने, कभी पुर्तगालियों ने, जिसको मौका मिला, वह लूटता रहा। फिर भी सोमनाथ अचानक खड़ा हो उठा। देश का बँटवारा हुआ, आज़ादी मिली, लेकिन हिंदू मन का व्यक्ति सत्तासीन नहीं हुआ। फिर भी जैसे तैसे हिंदुत्व नाम की विचारधारा आज़ से सौ वर्ष पहले लोगों ने सोच ली। वरना भारत के इस सम्पूर्ण गुलामी के इतिहास में एक बार भी हिंदुओं के लिए समर्पित मिला-जुला सामाजिक राजनीतिक आंदोलन कभी खड़ा ही नहीं हो पाया। कभी धार्मिक आंदोलन खड़ा हुआ, कभी आध्यात्मिक आंदोलन खड़ा हुआ, कभी राजनीतिक आंदोलन खड़ा हुआ, लेकिन दूरदृष्टि से सामाजिक राजनीतिक आंदोलन खड़ा नहीं हुआ। फिर भी हिंदू रोते गाते, गिरते पड़ते, रीढ़विहीन केचुए की तरह भले मिट्टी खाकर ही सही लेकिन अपनी हस्ती बचाकर रखी।
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