ज़िन्दगी ज़िन्दगी कोई अंकगणित नहीं कि जोड़ घटाव गुणा भाग कर मिल जाए कोई अंतिम फल।

ज़िन्दगी 
ज़िन्दगी कोई अंकगणित नहीं 
कि जोड़ घटाव गुणा भाग कर 
मिल जाए कोई अंतिम फल। 

ज़िन्दगी कोई अलजेब्रा का 
समीकरण भी नहीं 
जिसे सुलझाकर मिल जाए 
समस्याओं का एक हल। 


ज़िन्दगी ज्यामितीय भी नहीं 
जहाँ होती हैं सब सीधी रेखाएँ 
और नापे जा सकने वाले कोण, 
जहाँ होता है निश्चित आधार और 
लम्ब के संबंध का दृष्टिकोण। 


न ही ज़िन्दगी है कोई विज्ञान 
जहाँ तथ्य और कथ्य हों एक समान 
जहाँ निश्चित हैं फ़ार्मूले और 
प्रयोगों के परिणाम। 


ज़िन्दगी है एक दर्शन शास्त्र 
जिसे समझना नहीं आसान 
जिसके मायने हैं 
सबके लिए अलग अलग 
हर बार अलग, हर बार असमान। 


ज़िन्दगी है असंख्य अगणित 
अनबूझी अनसुलझी 
पहेलियों का तानाबाना 
ज़िन्दगी क्या है, क्यों है 
कब तक है, किसने जाना। 


कवि सन्तोष कुमार झा, सीएमडी कोंकण रेलवे

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