क्या मै बालक ही हूं?

क्या मै बालक ही हूं?

जिसकी सबको चाह थी क्या मैं वही हूं?
गलत हूं या सही हूं क्या मैं बालक ही हूं?

पसंद न पसंद क्या है ?
बस इच्छाएं है मन की
जब किसी ने पूछा नहीं 
तो मन में ही कुचल दीं
अब इससे कुछ आगे बढ़ रही हूं
गलत हूं या सही हूं, क्या मैं बालक ही हूं ?

नादानी में कुछ गलतियां भी की हैं 
माफी के आस में ज़िल्लतें भी सही हैं
बतकही गांवों  की, शहरो की दूरियां 
बेताबी पढ़ाई की पर स्थितियां नहीं है
खुद को थोड़ा बदल रही हूं..
गलत हूं या सही हूं क्या मैं बालक ही हूं ?

अग्निवेदी पर कुरीतियों की
भेंट चढ़ा कर, दफनाकर
सिहर,संभल कर झुंझलाकर 
कांटों से कांटों को सुलझाकर 
नया रास्ता बना रही हूं..
गलत हूं या सही हूं क्या मैं बालक ही हूं ?

अब मानव में न मान रह गया
स्पर्धा में बचपन तरुण हो गया
छोटे दिमाग से इतनी चाहत 
मानो बालक बुढ़ापा हो गया
इन उलझनो को कहे जा रही हूं..
गलत हूं या सही हूं क्या मैं बालक ही हूं।

हमें आखिर चाहिए ही क्या ?
मां बाप का प्यार दुलार
छात्र होने का अधिकार
अनुकूल परिस्थिति मिले
हम भी करें राष्ट्र उद्धार 
इन्हीं चाहतों में वह गुम सा होता है
बातें यही सब सोचकर मन रोता है
बदलाव की कोशिश में लिखे जा रही हूं
गलत हूं या सही हूं क्या मैं बालक ही हूं ?

माही वैष्णव 
कक्षा 12
STCC इण्टर कॉलेज झाझर बुलंदशहर

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