सरकारी कर्मचारियों की उदासीनता का सद्उपयोग करते लोग*|

*सरकारी कर्मचारियों की उदासीनता का सद्उपयोग करते लोग*|
*बिना पृष्ठ भाग लाल हुए यहाँ नहीं समझते लोग*||
     हमारे भारत में जनता सुखी रहे,स्वस्थ रहे,असमय न मरे,इसलिए सभी सरकारों ने इसका थोड़ा बहुत इंतजाम किया है|भूखी न मरे इसके लिए सरकारी कम दाम की दुकानें उपलब्ध करवाईं हैं|मगर सरकारी राशन के दुकानदार गरीबों का हक मारके अपना घर भर रहे हैं|आज भी इतनी रोक थाम के बावजूद भी कोटेदार जनता का हक मार रहे हैं|अंगूठा लगवा के 5 युनिट के बदले तीन या चार युनिट का ही राशन दे रहे हैं|जब कोई विरोध करता है तो उसका राशनकार्ड ही अधिकारियों की की मिलीभगत से निरस्त करवा देते हैं|इस भय से लोग विरोध नहीं करते|जिससे कोटेदार जनता का हक मार रहे हैं धड़ल्ले से|सरकारी कोई भी नियम कानून उनके लिए मायने नहीं रखता|क्योंकि कानून को वो अपनी रखैल बनाके रखे हैं|बड़े मजे की बात ये है कि ये सब यूपी में हो रहा है|जहाँ का शासक इस समय योगी बाबा बुलडोजर वाले हैं|
      मेरा सुझाव है जैसे पेंशन,किसान सम्मान निधि आदि सीधे  जनता के खाते में आता है वैसे ही राशन का पैसा सरकार जनता के खाते में भेजे|कोटेदारी वाली व्यवस्था बंद करे|इससे सरकार की छवि भी बनेगी,और जनता अपना हक सुचारु रूप से पायेगी|जनता यूँ दोनो तरफ से लूटी नहीं जायेगी|कोटेदारों की दबंगई से जनता को मुक्ति मिलेगी|जनता सुखी हो जायेगी|उसे उसके हक का सही सही धन मिलेगा|जो राशन सरकारी दुकानो के द्वारा जनता कम पाती है,वही राशन सरकार बजार में दे|इससे मंहगाई कम होगी|जनता बजार से अपने मन मुताबिक खरीदी करेगी|भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा|बर्तमान सरकार में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार तो बंद है|मगर छोटे स्तर पर भ्रष्टाचार चरम पर है|इस पर भी सरकार को ध्यान देना अति आवश्यक है|सरकारी कर्मचारियों का कान ऐंठना बहुत ही आवश्यक है|सरकारी कर्मचारी काम कम करते हैं|जनता को लूटते अधिक हैं|जिससे ग्रामीण जनता लूटी जा रही है|जबतक सरकारी तंत्र नहीं सुधारा जाएगा तबतक किसी भी सरकारी योजना का लाभ जनता को पूरा पूरा नहीं मिलेगा|
      सरकारी कर्मचारियों की उदासीनता का लाभ जनता भी खूब उठा रही है|जनता भी उनसे दस कदम आगे चल रही है|मगर अपना नुकसान करके|बर्तमान सरकार साफ सफाई पर विशेष ध्यान देते हुए हर घर शौंचालय बनवाई है|जिसका नाम रखा लज्जा घर|सरकार की सोंच है कि इससे लोग इधर उधर गंदगी नहीं फैलायेंगे|गंदगी नहीं होगी तो लोग निरोगी और स्वस्थ रहेंगे|इसके बावजूद भी लोग खुले में व सड़क किनारे शौंच कर रहे हैं|मछलीशहर तहशील अंतर्गत यह बहुतायत दिखाई दे रहा है|एक सड़क बरहता से बरपुर नये बने पावरहाऊस की सड़क है|उसपर आज भी लोग सड़क पर शौंच कर रहे हैं|और कई जगह लोग खुले में बेधड़क शौंच करके गंदगी फैला रहे हैं|ग्राम प्रधान भी मौन हैं|कोई कुछ नहीं बोल रहा है|बोले भी कौन?एक कहावत है जे छिनरा ते डोली के संगे|यदि कोई बोलने का साहस करता भी है तो वह मजाक का पात्र बना दिया जाता है|कभी कभी तो मारपीट तक की भी बात हो जाती है|यह खुले में शौंच जो करने वाले हैं अधिकतर दलित लोग हैं|इनसे कोई भी सभ्य व्यक्ति एस सी एस टी ऐक्ट के भय से बोलता नहीं|उसी कानून का सद्उपयोग करके दिलित बस्ती वाले बेधड़क कहीं भी खुले में या सड़कों पर अपनी गंदगी छोड़ रहे हैं|लोग विवश उनकी गंदगी देखने को व सहने को लाचार हैं|ऐसे ही कई ग्रामीण क्षेत्र सरकारी कर्मचारियों की उदासीनता का लाभ खुले में व सड़कों पर शौंच करके उठा रहे हैं|इस पर सरकार को विशेष ध्यान देकर रोंक लगानी चाहिए|नहीं तो हर घर सौंचालय व स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत की परिकल्पना बेमानी साबित होगी|
     इसी तरह कोई भी सरकारी योजना का लाभ जनता को सही तरीके से नहीं मिल पाता है|कोई भी सरकारी योजना सही समय से पूरी नहीं होती है|इस समय यूपी में हर घर नल की योजना चल रही है|पाईप सबके दरवाजे पर लग गई है|अब जबतक पानी आयेगा तबतक वह पाईप सड़ जायेगी|आधी पाईप लोग उखाड़ के उठा ले जायेंगे|क्या मतलब हुआ पाईप लगाके|ऐसे ही हर सरकारी काम हो रहा है|मटेरियल रखके गायब,जबतक काम करने आते हैं तबतक आधे से अधिक मटेरियल खराब या गायब हो जाता है|जनता समझती है कि ये सरकार का नुकसान हुआ है|जबकी नुकसान जनता का ही होता है|और भरपाई भी जनता ही करती है मंहगाई के रूप में|सरकारी कर्मचारियों की उदासीनता अनियमिता की वजह से बहुत ही हानि देश व जनता को उठानी पड़ रही है|फिर भी जनता समझने को तैयार नहीं है|यहाँ की जनता तब समझती है जब,आर्थिक दंड देना पड़े या पृष्ठ भाग लाल किया जाय|इसके पहले वह स्वयं को ही सरकार समझती है|वो समझती भी इसलिए है की सरकारी कर्मचारी अपने कर्तव्य के प्रति उदासीन हैं|वो धन उगाही में व्यस्त हैं|इसीलिए मूर्ख जनता अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रही है|वह यह समझने को तैयार नहीं है कि हम तन धन मन तीनों बरवाद कर रहे हैं,बस ऐंठन में|
पं.जमदग्निपुरी

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