गिरीश के खूबसूरत मुक्तक टूट कर मौसमी बरसात होने वाली है।।
गिरीश के खूबसूरत मुक्तक
टूट कर मौसमी बरसात होने वाली है।।
धरा गगन से मुलाक़ात होने वाली है।।
लौट कर आने की संभावना नहीं कोई-
घर चलो लौट चलें रात होने वाली है।।
रख न दिल में तु कसर कोर ज़िन्दगी कर दे।।
चाहे इस ओर या उस ओर ज़िन्दगी दे दे।।
कोई शिकवा न शिकायत करूँगा मैं तुझसे-
तम ही तम चाहे सुखद भोर ज़िन्दगी कर दे।।
सच कहूँ तो ना कोई अपना ठिकाना ठौर है।।
चल रही है और चलाने वाला कोई और है।।
हर तरफ केवल तबाही ही तबाही दोस्तों-
आग पानी धूल धूआँ हादसों का दौर है।।
इस कदर से शहर ने मन को लुभाया खो गया।।
नेह के बट वृक्ष सूखे दूर छाया हो गया।।
बढ़ रही कटुता निरंतर मर रही संवेदनाएं-
प्राण से प्रिय गाँव जैसे अब पराया हो गया।।
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