मेरे मधुमास आ गये होतें।। फिर मेरे पास आ गये होते।।
मेरे मधुमास आ गये होतें।।
फिर मेरे पास आ गये होते।।
दिल में आंखों में बसा लेता तुम्हेँ-
लौट कर काश आ गये होते।।
खुद अपने आप से जो लोग बैर करते हैं।।
वो दूसरों का कहाँ यार ख़ैर करते हैं।।
बलन्दी दूर बहुत दूर छू नहीं सकते-
सिर्फ ख़्वाबों में ख़यालों सैर करते हैं।
अंधेरे तो उजालों को तिरस्कृत कर नहीं सकते।।
किसी भी हाल में तम को पुरस्कृत कर नहीं सकते।
सफलता साधना के बिन तो विकसित कर नहीं सकते-
विना सद् आचरण खुद को परिष्कृत कर नहीं सकते।।
मंत्रों से विचारों को अभिमन्त्रित किये हैं हम।।
आयेंगे मेरे काम आमंत्रित किये हैं हम।।
आंधी तूफान में भी अडिग हम रहे सदा-
बस साधना से मन को नियंत्रित किये हैं हम।।
हथेली पर सदा अपनी हम अपनी जान रखते हैं।।
हृदय में आस्था विश्वास और सम्मान रखते हैं।।
जलन ईर्ष्या कपट छल से स्वयं को मुक्त रखता हूँ-
मधुर वाणी अधर पर अपने हम मुस्कान रखते हैं।।
जहाँ व्यापार हो समझो वहीं अनुबंध होता है।।
खिलें हो फूल रिस्तों के मधुर मधु गंध होता है।।
बाजारों में नहीं बिकते, न कोई मोल होता है-
जहाँ पर प्रेम हो अपनत्व हो संबंध होता है।।
हमारी ज़िन्दगी से रात ये काली ढ़लेगी क्या।।
अकेले हाथ से ताली असंभव है बजेगी क्या।।
चले आओ प्रतिक्षारत मेरी आँखें बुलाती हैं-
तुम्हारे बिन मेरे दिल की कभी महफ़िल सजेगी क्या।।
अविरल गतिमय है स्वयं काल अवरुद्ध नहीं अस्मर्थ नहीं।।
बहुमूल्य समय है जीवन का क्षण लेशमात्र हो व्यर्थ नहीं।।
हो स्नेह सिक्त हर शब्द मधुर छू ले दिल को कोमल भाषा-
मन को न करे आह्लादित जो ऐसे वाणी का अर्थ नहीं।।
Comments
Post a Comment