इरादों के जो पक्के हैं कभी भी लच नहीं सकते ------मुक्तककार गिरीश कुमार श्रीवास्तव गिरीश
इरादों के जो पक्के हैं कभी भी लच नहीं सकते
------मुक्तककार गिरीश कुमार श्रीवास्तव गिरीश
इरादों के जो पक्के हैं कभी भी लच नहीं सकते।।
परिन्दे कैद में रह कर के साज़िश रच नहीं सकते।।
अदालत की नज़र सचमुच बहुत बारीक होती है-
गुनाहों की सज़ा से आप बिल्कुल बच नहीं सकते।।
लगी हो आग दिल में तो दहकना छोड़ दे कैसे।।
है स्वभाविक भरे बादल बरसना छोड़ दे कैसे।।
तुम्हारे चाहने से तो असंभव है नहीं होगा-
मंहकना धर्म है गुल का मंहकना छोड़ दे कैसे।।
समय के सामने कोई चुनिन्दा रह नहीं सकता।।
उड़ेगा पर मिला बैठा परिन्दा रह नहीं सकता।।
हया थोड़ी सी अपनी आखं में रहने दो तो अच्छा-
अगर पानी मरा तो सीप जिन्दा रह नहीं सकता।।
हो गई हद झूठ को ही सच बताया जा रहा है।।
और सच है सच को दुनिया से छिपाया जा रहा है।।
ये सियासत तीर है तलवार है और ढ़ाल है-
साफ सुथरा कातिलों को क्यों बताया जा रहा है।।
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