फूट डालो राज करो राजनीति का तीक्ष्ण हथियार है*

*फूट डालो राज करो राजनीति का तीक्ष्ण हथियार है*
     पहले जब हमारे आर्यावर्त में राजशाही चलती थी तब जो शक्तिशाली होता था वही राजा बनता था|और शासन करता था|कालांतर में धीरे धीरे म्लेच्छों का प्रभाव बढ़ने लगा|तब शक्ति का दुरुपयोग होने लगा|और क्रूर शासको का उदय हुआ|जिसके परिणाम स्वरूप जनता में भी आक्रोश बढ़ने लगा|विद्रोह की आग सुलगने लगी|उसी बीच में अंग्रेज व्यापार करने की नियति से देश में प्रवेश किए|धीरे धीरे एक कम्पनी आई,ईस्ट इण्डिया के नाम से|उन लोगों ने देखा कि यहाँ तो कभी भी विद्रोह हो सकता है|आग सुलग रही थी और अंग्रेजों ने उसमें घी डाल के प्रज्ज्वलित कर दिया|और ऐसे लोगों को और ऐसे राज्यों को अपनी तरफ मिलाना शुरू कर दिया,जो विद्रोह करने की सोंच रहे थे|या जो डर रहे थे|प्रलोभन देकर हथियार देकर अपनी तरफ कर लिए|धीरे धीरे ब्रिटिश सरकार इसमें कूद गई और लगभग पूरे भारत पर अपना दबदबा कायम कर लिया|उनकी नीति फूट डालो राज करो,यहाँ खूब सफल रही|
         1947 में जाते जाते अंग्रेज अपनी अचूक नीति फूट डालो राज करो,तत्कालीन सरकार को सौंपते गये|आजादी के बाद हमारे देश में संविधान बना|हम भारतियों को अपना संविधान मिला|लेकिन अपना नहीं था|क्योंकि 90%से अधिक तो मुगलिया व अंग्रेजों का ही विधान था|हमारे जो कानून थे सब रद्द कर वही अंग्रेजों के विधान हमारे संविधान में निहित किए गये|ठीक उसी तरह जैसे आज की जितनी हिन्दी फिल्में अक्सर बनती हैं वो अंग्रेजी फिल्म की रीमेक होती हैं|वैसे ही हमारा संविधान भी बहुत हद तक ब्रिटिश सरकार के संविधान का रीमेक ही है|उसमें भी फूट डालो वाली ही नीति निहित है|समानता की बात मजबूती से नहीं रखी गई|धार्मिक व जातिवादी बॕटवारा प्रमुखता से रखा गया|कोई भी सरकारी काम के लिए जाति आवश्यक कर दी गई|धर्म आवश्यक कर दिया गया|जिससे समानता लुप्त हो गई मानव मानव न रहके विभिन्न जातियों में बॕटकर सवर्ण पिछड़ा अति पिछड़ा दलित व अति दलित हो गया|जिस आर्य संस्कृति में|सब एक साथ रहते खाते थे|वह छिन्न भिन्न हो गया|मंदिर पर मुगलों की तरह टैक्स लगा रहा और मस्जिद चर्च सरकारी खर्चे से चल रहे हैं|यह असमानता हमारे संविधान की ही देन है|जिसे आज के विपक्षी मजबूती से मानते हैं|
    धार्मिक आधार पर भी बॕट गये आज का विपक्ष और,इसका प्रखर प्रचार प्रसार सत्तासीनों ने सत्ता बनाये व बचाये रखने के लिए आज तक अनवरत जारी रखा हुआ है|कोई राजनीतिक दल धर्म के नाम से सबको डरा रखा है तो कोई जाति के नाम से हम भारतवासियों को डरा कर अपना उल्लू सीधा कर देश के साथ,हम आमजनों के साथ छल कर रहा है|हम लोगों का हक लूटकर अपनी तिजोरियाँ भर रहा है|और हम उनके दिवाने बने अपनी जान दे रहे हैं|
        फूट डालो राज करो वाली नीति पर हमारी पुरानी राजनीतिक पार्टी बड़ी ही तन्मयता से कार्य करते आ रही है|खुद को धर्मनिर्पेक्ष कहते कहलवाते नहीं थकती है|और खुद ही एक खास धर्म के लिए अलग नियम बनाकर रखी है|जाति निरपेक्ष बनती है|और देश में जातिगत जनगणना की बात करती है|मजे की बात देखिये,हिन्दुओं में करवाने की बात करती है|मगर अन्य धर्मों में नहीं|जबकी अन्य धर्मों में भी अनेक जातियाँ हैं|यही है इनकी धर्मनिरपेक्षता|और जाति निर्पेक्षता|
    कांग्रेस ने बड़ी ही चतुराई से हम सबके साथ छल करते हुए पहले तो देश हड़प लिया|उसके दो टुकड़े करवा कर|इसके बाद एक टुकड़े को तो धर्म के आधार पर बनाय, जो कि शुद्ध रूप से मुस्लिम देश पाकिस्तान बना|और यहाँ जो बचा भारत था, उसे धर्मनिरपेक्ष बनाकर उसकी लुटिया आज तक डुबाए रखा है|जब पाकिस्तान धर्म के अधार पर बन गया तो भारत क्यों धर्म के आधार पर नहीं बना|उसके मूल में वही फूट डालो राज करो वाली नीति थी|पुस्त दर पुस्त हम भारतवासियों को डरा कर रखने वाली नीति थी|जो कांग्रेसियों में सतत आज भी काम कर रही है|
    जाति के नाम से डराये धर्म के नाम से डराए|दोनो मुद्दे जब नाकाम होने लगे तब ईवीएम के नाम से दस वर्षों से डरा डरा के थक गये|सफलता नहीं मिलती देख अब नया शिगूफा लेकर आये हैं|कांग्रेस के कथित अध्यक्ष महोदय एक सभा में कह रहे थे कि अबकी बार यदि भाजपा सत्ता में आई तो सबसे वोट का अधिकार छिन जायेगा|कितनी हास्यास्पद बात की है|ऐसा लगता ही नहीं ये किसी राष्ट्रीय पार्टी के मुखिया का भाषण है|कांग्रेस को ऐसे ही लोग इस स्थिति में लाकर खड़ी कर दिये हैं|जिस पार्टी का जनाधार पूरब से पश्चिम उत्तर से दक्षिण  चहुँ दिशि था,वह पार्टी आज छोटे छोटे क्षेत्रीय दलों के सामने गिड़गिड़ा रही है|जैसे भीख माँग रही है कि मुझको भी दो एक सीट दे दो चुनाव लड़ने के लिए|इतनी लाचार पार्टी हमने अपने समझदारी वाले जीवन के 45 वर्ष में कभी नहीं देखी|
       ये हो यूँ रहा है कि कांग्रेस अभी भी 1947 के बाद वाले ही भारत में जी रही है|अगड़े पिछड़े के चक्कर लगा रही है|वह उससे उबर ही नहीं पा रही है|वह यह सोंच ही नहीं पा रही की तब दो चार गाँव में एक रेडियो होता था|टीवी और टेलीफोन शहरों में बमुश्किल से किसी किसी के यहाँ अजूबे की तरह था|वहीं आज हर हाँथ मोबाईल है|दुनयाँ मुट्ठी में है|अमेरिका में कब किसको छींक आई नेपाल में तत्क्षण पता चल जाता है|पर कांग्रेस  है कि मानने को तैयार नहीं|उसे अभी भी लगता है कि हमारी वही हांडी बार बार भोजन पकायेगी|
    अब लोग सजग हो गये हैं|तेल औ तेल की धार दोनो देख रहे हैं|उसमें भी 2014 के बाद जो लोगों में बदलाव आया है वह तीब्र गति से आया है|लोग एक हांडी देखते देखते ऊब गये हैं|लोग कुछ अलग देखना चाहते हैं|मगर आज का हमारा विपक्ष बार बार वही फंडा लेकर आ रहा है|जबकी वो फंडा विपक्ष का कई बार अपने दाँत औंधे मुँह गिरके तुड़वा चुका है|फिर भी वही राग अलाप रहा है|अगड़ा पिछड़ा|जबकी इस बात को अब प्रबुद्ध भारतीय नागरिक शिरे से नकार रहे हैं|अब आमजन को देश का विकास अच्छा लग रहा है|इसलिए बार वही सरकार चुन रहे हैं|अब लोग समझ रहे हैं कि जाति पाति में उलझने से न खुद का भला होगा न देश का|अब लोग ये सोंच रहे हैं देश का भला होगा तो अपना भी होगा ही होगा|एक पार्टी आज यह उपरोक्त बात जनता के दिमाग में बैठाने में पूरी तरह सफल होते दिख रही है|वह देशवासियों को विश्व की  तीसरी आर्थिक शक्ति बनते भारत को दिखा रही है|वो लोगों को उज्ज्वल दमदार भारत को विकसित होने का सपना दिखा रहा है और सफल भी हो रहा है|वहीं विपक्ष फूट डालो वाली ही नीति पर आगे बढ़ रहा है|और देश के विकास के लिए कोई सपना ही नहीं दिखा पा रहा|वो अभी भी एक ही रट लगाये है|भाजपा हटाओ,हमको लाओ|
     आपको क्यों लाये जनता|जनता को बताओ तो सही|वह नहीं बता पा रहे|बताते हैं,भाजपा अबकी आई तो आरक्षण खतम कर देगी,मुसलमानों का जीना हराम कर देगी|अब एक और डर दिखाना शुरू कर दिए हैं|कि अबकी भाजपा आई तो वह चुनाव ही खतम कर देगी|आपके वोट का अधिकार छीन लेगी|सपना दिखाने की जगह आज का विपक्ष लोगों को डरा रहा है|अब भला बताओ अच्छा सपना लोग देखना चाहेंगे कि डरावना|जब हम अच्छा सपना देखते हैं तो सोंचते हैं कि इस रात की सुबह ही न हो|जब डरावना देखते हैं सोंचते हैं कि रात हीन हो|
इसलिए जनता अब इन्हें निरस्त और बर्तमान सरकार को आश्वस्त कर रही है|एक यात्रायें निकाल रहे हैं भारत जोड़ो|तो लोगों ने सोंचा कि शायद ये पाकिस्तान बांग्लादेश को पुनः भारत में जोड़ने की बात कर रहे हैं|पर पता चला कि ये तो अपना कुनबा जोड़ रहे हैं|वैसे ही अब न्याय यात्रा पर निकलें हैं|यहाँ जनता सोंच रही है कि कौन सी न्याय यात्रा पर निकलें|क्या निहत्थे साधुओं गो भक्तों के ऊपर लाठीचार्ज और गोली जो चली थी उसके लिए|या 1984 में जो सिख मारे गये थे उसके लिए|1990 में कारसेवको पर गोली चली थी उसके लिए|गोधरा में जब कारसेवक जिंदा जलाये गये थे उसके लिए या रामलीला मैदान में सोई हुई जनता पर आधी रात को लाठी चलवाने के लिए न्याय यात्रा निकाले हैं|यहाँ भी फिसिड्डी|यहाँ अपने ही कुनबे के लिए निकले दिख रहे हैं|यह सब जनता किसी भी तरह से सिरियस नहीं ले रही|बस नौटंकी के अलावां कुछ समझ ही नहीं पा रही|जनता अब एक बात अच्छी तरह समझ गई है कि इतने दिनों से हम सबके बीच भय फैलाकर हम भारतवासियों को भिन्न भिन्न कर बेवकूफ बनाकर ए राजनीतिक पार्टियाँ अपने तो सपरिवार राजसी सुख भोगती आ रही हैं और हमें खाने लिए डंडे ही मिल रहे हैं|इसलिए अब फूट डालो राज करो वाली नीति प्रभावी नहीं होगी|भाजपा से लड़ना है तो उससे अच्छा सपना लोगों दिखाना होगा|अब ईवीएम का रोना धोना छोड़ना होगा|1947 की स्थिति से जैसे देशवासी उबर कर आगे बढ़ रहे हैं वैसे ही आज के विपक्ष को भी उबरना होगा|किसी का हौव्वा दिखाकर या जनता को डरा कर या फूट डालकर सत्ता तक नहीं पहुँचा जा सकता|
पं.जमदग्निपुरी

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