दूर रहते हैं तो दिल को बेजार करते हैं।। --- मुक्तककार गिरीश कुमार श्रीवास्तव गिरीश

दूर रहते हैं तो दिल को बेजार करते हैं।। 
--- मुक्तककार गिरीश कुमार श्रीवास्तव गिरीश 
दूर रहते हैं तो दिल को बेजार करते हैं।। 
चाहने वाले दिलोजां निसार करते हैं।। 
मैं खुशनशीब हूँ नफ़रत कोई नहीं करता-
दोस्त दुश्मन भी मुझे दिल से प्यार करते हैं।।

ग़म मे भी हम विहार करते है।।
और खुशियों से प्यार करते हैं।। 
वक्त से पहले है मिला किसको-
वक्त का इन्तजार करते हैं।।

सुब्ह लेते हैं शाम लेते हैं।। 
एक तेरा ही नाम लेते हैं।। 
रूठ कर मुझसे बेवजह हमदम-
खुद से क्यों इन्तकाम लेते हैं।।

आखिरी ज़िन्दगी की तुम मेरी तलाश रहो।। 
दिल तुम्हारा है मेरे दिल में सनम खास रहो।। 
देखता मैं रहूँ बस इतनी इल्तिजा है मेरी-
 दूर जाओ न कहीं मेरे आस-पास रहो।।

ढ़लना शुरू हुआ तो फिर ढ़लता  चला गया।। 
जीने का रूख़ स्वयं ही बदलता चला गया।। 
मुड़कर भी नहीं देखा कभी वक्त दोस्तों-
ठहरा नहीं पल भर समय चलता चला गया।।


बस फर्ज अदा करते चले जा रहे हैं क्यों।। 
किस सोच में पड़े हैं गले जा रहे हैं क्यों।। 
किस्मत को कोसते हैं क्यों मलते हैं हथेली-
ग़ैरों की खुशी देख जले जा रहे है क्यों।।

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