आंखें*चिरकाल से जागती आंखें,अब सोना होगा क्या ?
*आंखें*
चिरकाल से जागती आंखें,
अब सोना होगा क्या ?
बड़े-बड़े जख्मों की पीड़ा,
हंसती आंखों से मैं पीती ,
प्रश्न चिन्ह कुछ आंखों में है,
अब रोना होगा क्या?
आंखें झर-झर सरिता बन गई ,
पथराई है पाहन-सी ,
भावों की हर कली मुरझाई ,
अब भिगोना होगा क्या?
जादू करते नयन तुम्हारे,
नजर को मेरे नजर लग गई,
खिली- खिली वह खटक रही है,
अब टोना होगा क्या?
जन्म लिया तब से पाया है,
चाही और अनचाही चीजें ,
रिक्त समय ना रिक्त जगह है,
अब खोना होगा क्या?
जीते -जीते जी ना पाएं,
उधड़े रिश्ते सी ना पाएं ,
बिखर गए यादों के मोती,
अब पिरोना होगा क्या ?
चिरकाल से जगाती आंखें,
अब सोना होगा क्या?
श्रीमती सिंधवासिनी तिवारी 'सिंधु'
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