अंतर्राष्ट्रीय बाल सुसंस्कार शिविर सर्वांगीण विकास का सशक्त माध्यम

अंतर्राष्ट्रीय बाल सुसंस्कार शिविर सर्वांगीण विकास का सशक्त माध्यम
बेतिया - योग फाॅर लिबरेशन के तत्वावधान में नैतिकवान बनने का सफर कार्यक्रम उच्चकी आयोजिका L.F.T. व्यंजना आनन्द मिथ्या द्वारा बच्चों में सुसंस्कारों, नैतिकता और आध्यात्मिकता का बीजारोपण किया जा रहा है। आठ दिवसीय निःशुल्क शिविर के द्वितीय दिवस का शुभारंभ प्रार्थना से करते हुए मिथ्या जी ने बच्चों को नमस्कार की सही विधि सिखाई और बताया कि हमें दूसरों के अन्दर विराजमान ईश्वर को दोनों हाथ जोड़कर अंगूठों को भृकुटी के पास लाकर फिर हृदय के पास लाते हुए श्रद्धा से सामने वाले के अन्दर विराजमान ईश्वर को प्रणाम करना चाहिए। प्रथम दिवस की तरह ही आज भी बच्चों से उन्होंने ध्यान साधना कराई। योगासन के क्रम में पुन: बध्य पद्मासन, चक्रासन, ज्ञानासन, वृक्षासन, सहज उत्कटासन आदि का अभ्यास कराया। इन आसनों से होने वाले‌ लाभों के बारे में भी विस्तार से बच्चों को बताते हुए नियमित योगाभ्यास के लिए प्रेरित किया।
यम साधना के दो सोपानों  अहिंसा और सत्य की व्याख्या प्रथम दिन हो चुकी थी। उसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए व्यंजना जी ने  तीसरी सीढ़ी बतायी - अस्तेय 
इसका अर्थ होता‌ है - चोरी नहीं करना। किसी दूसरे की वस्तु को बिना पूछे ले लेना ही चोरी कहलाती‌ है। चोरी दो प्रकार की होती है - 1. शारीरिक चोरी  2. मानसिक चोरी।
किसी व्यक्ति के सामान को चुरा लेना शारीरिक चोरी है।
लेकिन किसी सुन्दर वस्तु को देखकर उसे चुरा लेने का भाव मन में आए और हम उसे चुरा भी न पायें, तब भी वह मानसिक चोरी कहलाती है। उसका भी वही पाप है जो सही में चोरी करने का है। ईश्वर हम सबके अन्दर बैठे हैं और हमारे मन के भी सभी भावों को जानते हैं। अत: बुरे विचारों से भी बच के रहना है। विभिन्न उदाहरणों से बच्चों को इस विषय को आत्मसात कराया गया।
यम साधना का चौथी सीढ़ी - ब्रह्मचर्य
ब्रह्म की ओर चलना, ईश्वर की ओर चलना ही ब्रह्मचर्य है। हर जगह ईश्वर को देखना, हर व्यक्ति में, हर वस्तु में, अन्दर ,बाहर हर जगह जब हम ईश्वर की अनुभूति करने लगते हैं तो हम ब्रह्मचारी बन जाते हैं। हमारे अन्दर ईश्वरीय शक्ति आने लगती है। सकारात्मकता आने लगती है। हम सबसे प्यार करने लगते हैं। हम अच्छे बनने लगते हैं और हमारे अन्दर की गंदगी , मलिनता, नकारात्मकता बाहर निकलने लगती है।
व्यंजना आनन्द मिथ्या जी ने बच्चों को एक लालची ठेकेदार की और संगठित ग्राम वासियों की कहानी के माध्यम से बच्चों को नैतिक मुल्यों का शिक्षण दिया। बच्चों को खान पान के माध्यम से मेमोरी पावर बढ़ाने के कारगर नुस्खे बताते हुए शिविर का समापन हुआ।
शिविर का तृतीय दिवस -
व्यंजना जी ने प्रार्थना से शिविर का शुभारंभ करते हुए ध्यान, योगासन का सुन्दर अभ्यास कराया। बच्चों ने बड़ी तत्परता से सभी योगाभ्यासों को किया और उनसे मिलने वाले लाभों पर भी चर्चा की।
आज बच्चों को कौशिकी नृत्य की विधि सिखाई गई। इसकी ललित मुद्रा तथा 18 स्टेप बतायें गये। इससे मिलने वाले लाभ असाधारण हैं। कौशिकी नृत्य करने से शरीर के सारे रोग दूर होते हैं। आत्म शक्ति बढ़ती है। स्मरण शक्ति बढ़ने लगती है। शरीर पर बढ़ती उम्र का‌ असर नहीं पड़ता। हम‌ शक्तिशाली बनने लगते हैं। मिथ्या जी का कहना है कि प्रत्येक विद्यालय में बच्चों को कौशिकी नृत्य करवाया जाना‌ चाहिए। इस दिशा‌ में उनके द्वारा प्रयास जारी है।
इसके‌ पश्चात मसाज और  शवासन की विधि बताते हुए बच्चों से इसका अभ्यास करवाया‌ गया।
तत्पश्चात् यम साधना के पाँचवे सोपान के बारे में बताया गया।
पाँचवा सोपान है - अपरिग्रह।
हमारे पास जो भी चीजें संपत्ति, साधन उपलब्ध हैं, उनमें से अपनी आवश्यकता से अधिक चीजों को दूसरे जरूरतमंदों को दे देना ही अपरिग्रह है। बच्चों को सरल उदाहरण के माध्यम से इस बात को समझाया गया।
 प्रेरक कहानियों की श्रृंखला में उदार , सेवाभावी, परोपकारी किसान और लालची नाई की कहानी के‌ माध्यम से बच्चों को निस्वार्थ सेवा और उससे मिलने वाले दैवी अनुदानों के बारे में बताते हुए शिविर का समापन किया गया।
मीडिया प्रभारी - रीता लोधा

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