भोर की लालिमा रंग रंजीत गगन

भोर की लालिमा रंग रंजीत गगन
भोर की लालिमा रंग रंजित गगन, रश्मियाँ सूर्य की जगमगायें पुनः!! 
तम गया प्रात लेकर के आई खुशी ज्योति से  मुग्ध तृण तृण नहायें पुनः!! 
क्षीण संभावना हो न पाई कभी डाल पर नीड़ खगकुल रचायें पुनः!! 
भाव सुन्दर जगा स्वर भी सुन्दर लगा, गीत सुन्दर सदा गुनगुनायें  पुनः!!


बेवज़ह मुझसे नाराज हैं आप क्यों, आप अपना समझ कर के आयें पुनः!! 
आश की डोर टूटी नहीं उर विकल,दृग विकल, रूप अपना दिखायें पुनः!!
सारे शिकवे गिले दूर हो जायेंगे, दिल से दिल को जरा फिर मिलायें पुनः!! 
मर न जायें कहीं भावनायें मृदुल,सोई संवेदना को जायें पुनः!!


खुल के क्यूँ सामने आप आते नहीं, सामने सज संवर के आयें जरा!! 
बाद मुद्दत मिले हैं मधुर यामिनी,प्रीत के गीत फिर से सुनायें जरा!! 
कल्पनातीत सौन्दर्य रस से भरी, रूप अनुपम  नयन को दिखायें जरा!! 
दांत से अपने उंगली दबा कर प्रिये, अच्छा लगता है बस मुस्करायें  जरा!!

एडवोकेट गिरीश श्रीवास्तव 
जौनपुर

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