उजाला घर में हो मेरे उन्हें अच्छा नहीं लगता
उजाला घर में हो मेरे उन्हें अच्छा नहीं लगता
बहुत चाहा कि ना निकले निकल जाते हैं आखिर क्यों!!
संजोया था जिन्हें आंखों में ढ़ल जाते हैं आखिर क्यों!!
ये मोती हैं जिन्हें दुनियाँ ने आसूं नाम दे डाला-
जरा सी ठेस लगने से मचल जाते हैं आखिर क्यों!!
किसी की याद में घुट कर गले जाते हैं, आखिर क्यों!!
हमारी बदनसीबी है छले जाते हैं, आखिर क्यों!!
उजाला घर में हो मेरे,उन्हें अच्छा नहीं लगता
खुशी को देखकर मेरी जले जाते हैं आखिर क्यों!!
विरह की आग में तपना कहेंगे, हम अपनी आंख का सपना कहेंगे!!
तुम्हारा हो न पाये ग़म है मुझको,मगर फिर भी तुम्हें अपना कहेंगे!!
देके आवाज मुझको सपनों में, बेवज़ह नींद तोड़ देते हैं!!
दिल को देकर के दिसासा हमदम आप उम्मीद तोड़ देते हैं!!
दूर रहकर भी पास रहते हैं, मेरे महबूब साथ रहते हैं!!
एक पल भी जुदा नहीं होते, आप तो दिल में खास रहते हैं!!
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