शंख त्रिशूल अउ स्वास्तिक सोहत, चित्र मिटे न मिटावत बायेंन।।
शंख त्रिशूल अउ स्वास्तिक सोहत, चित्र मिटे न मिटावत बायेंन।।
तर्क कहाँ बा कुतर्क गिरीश करैइ,मतभेद बढ़ावत बायेंन।।
मानत नाइं हयें सच के,शिव लिगं के झूठ बतावत बायेंन।।
काल जयी महाकाल क मन्दिर, मस्जिद,भ्रम फैइलावत बायेंन।।
आदि न अन्त अनन्त-अनन्त, असीम कृपा शिव काशी विराजैइ।।
नाश करैइ दुख क क्षण में,गण संग उमा सुखरासी विराजैइ।।
गौरी सिंगार पटार करैइ, अवतार लिहीं अविनाशी विराजैइ।।
काशी में गंग उमंग तरंग,गिरीश,जहाँ शुभराशी विराजैइ।।
शंख त्रिशूल अउ स्वास्तिक सोहत, चित्र मिटे न मिटावत बायेंन।।
तर्क कहाँ बा कुतर्क गिरीश करैइ,मतभेद बढ़ावत बायेंन।।
मानत नाइं हयें सच के,शिव लिगं के झूठ बतावत बायेंन।।
काल जयी महाकाल क मन्दिर, मस्जिद,भ्रम फैइलावत बायेंन।।
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