*मन्नत, मान्यता और समाज*घुरहू,कतवारू,मटरू,पनारू....सुनने में कुछ अजीब से नाम
*मन्नत, मान्यता और समाज*
घुरहू,कतवारू,मटरू,पनारू....
सुनने में कुछ अजीब से नाम
हमारे गाँव-देश की परम्परा में
अक्सर सुनने को मिल जाते हैं
अमूमन.....!
काफी मन्नतों के बाद जन्मे या
फिर संतति परम्परा को
आगे बढ़ाने की मुराद से...
देर से जन्मे बालक की
जीवन रक्षा के लिए,
मान्यताओं और विश्वास पर
दिए जाते हैं ऐसे नाम.....
कभी देव पूजन-श्रृंगार,
कभी मजार पर,
चादर चढ़ाने की मन्नत...
कभी नदी में,
आर-पार की माला की मन्नत एवं
श्रद्धा का परिणाम होते हैं ये नाम
इतना ही नहीं.....
कभी-कभी संतान की रक्षा हेतु
गाँव-देश के ही किसी परिचित का
नाम माँ-बाप के रूप में
दे दिया जाता है.....!
जाहिर है......
जैविक माँ-बाप अलग और
सामाजिक माँ-बाप अलग....!
एक रचनाकार तो दूसरा पालनकर्त्ता
मित्रों विचार करें और देखें कि....
ईश्वर पर विश्वास और
हमारी सामाजिक व्यवस्था
दोनों एक ही तराजू के,
दो पड़ले हैं और साथ ही
समतुल्यता की स्थिति में हैं.....
एक पड़ला दृष्टिगोचर है तो
दूसरा अगोचर..ईश्वरीय विधान...!
मन्नत पूरी होने पर,
श्रद्धा पूर्ण समर्पण और
इष्ट-देव के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन से
इतना तो स्पष्ट है कि
मन्नतों को......
सामाजिक मान्यताओं ने,
संभाल रखा है और
मन्नतों ने ईश महिमा को
बहाल रखा है....
मन्नतों ने ईश महिमा को
बहाल रखा है....
रचनाकार.....
जितेन्द्र कुमार दुबे
क्षेत्राधिकारी नगर/अपर पुलिस अधीक्षक, जनपद-जौनपुर।
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