दिव्य कल्पतरू है श्रीमद्भागवत कथा– सुबोध महाराज

दिव्य कल्पतरू है श्रीमद्भागवत  कथा– सुबोध महाराज
सुल्तानपुर। श्रीमद्भागवत कथा दिव्य कल्पतरु है। यह अर्थ, धर्म, काम के साथ साथ भक्ति और मुक्ति प्रदान करके जीव को परम पद प्राप्त कराता है।उक्त उद्गार स्थानीय चाँदा बाजार में कादीपुर रोड पर आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत महापुराण ज्ञानयज्ञ  के दूसरे दिन अयोध्या से पधारे आचार्य सुबोध जी महाराज भागवताचार्य ने श्रोताओं के समक्ष व्यक्त किए। कथा को  आगे बढ़ाते हुए ध्रुव चरित्र का वर्णन किया। राजा उत्तानपाद की रानी का सुनीति थी। संतान उत्पन्न ना होने के कारण महाराज उत्तानपाद ने दूसरा विवाह सुरुचि से किया। जैसे ही राजा के जीवन सुरुचि आई और सुनीती गयी मानो रुचि आ गयी और नीति चली गई। सब कुछ बदल गया ।  इसलिए जीवन में नीति का अनुसरण करना श्रेयाकर है। रुचि का अनुसरण दुख का कारण है।
 संगीतकार राजेश जी महाराज की स्वर लहरियों से उपस्थित जनमानस भक्ति भाव से झूम गया। कथा अंतराल में भावपूर्ण भजनों की प्रस्तुति से वातावरण भक्तिमय हो गया।इस मौके पर राजपति मिश्र,विद्याधर तिवारी,डॉ सूरज मिश्रा, सुरेंद्र दुबे, जयप्रकाश पांडेय, राजबहादुर यादव, मार्तण्ड मिश्र, की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

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