सत्यज्ञान के बिना मुक्ति सम्भव नहीं--स्वामी विवेकानंद परिव्राजक

सत्यज्ञान के बिना मुक्ति सम्भव नहीं--स्वामी विवेकानंद परिव्राजक

महरौनी(ललितपुर)-- महर्षि दयानन्द सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्वाधान में संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य द्वारा आयोजित ऑनलाइन वेविनार में वैदिक धर्म संस्कृति रक्षार्थ सन्यासी स्वामी विवेकानंद   परिव्राजक दर्शनाचार्य, योगाचार्य निदेशक आर्य वन रोजड़ गुजरात ने कहा कि वैदिक त्रैतवाद ईश्वर,जीव,प्रकृति इनमें ईश्वर सूक्ष्मतर, सूक्ष्मातिसूक्ष्म होने से  सर्वज्ञ और सर्वव्यापक हैं इसीलिए उसे जीवों द्वारा किये गए  प्रकट-अप्रकट कर्मो का ज्ञान रहता हैं जबकि जीव सूक्ष्म परिमाण बाला तो है परंतु  अल्पज्ञ तथा एकदेशीय होने से पूर्ण ज्ञान से अनभिज्ञ है कर्मफल की व्यवस्था में जीव कर्म करने में स्वत्रंत तथा कर्मफल भोगने में परतंत्र हैं। अतः सनातन वैदिक धर्म मे जीवों को चार वर्णों में बांटा गया है जिससे उत्तरोत्तर ज्ञान प्राप्त करते हुए ब्राह्मणत्व को प्राप्त होकर पंच महायज्ञों को करते हुए पाँच के दुःखों को काटकर मोक्ष को प्राप्त किया जा सके। पाँच क्लेश अविद्या,अस्मिता,राग,द्वेष और अभिनिवेष हैं।मुक्ति अर्थात जिससे सब बुरे कामों और जन्ममरणादि दुःख सागर से छूटकर सुख स्वरूप परमेश्वर को प्राप्त  होक़े सुख ही में रहना।
अंत मे शंका-समाधान करते हुए प्रश्न क्या मुक्ति एक जन्म में सम्भव है  उत्तर नही ,मुक्ति कई जन्मों के प्रयास का फल ।
प्रश्न मुक्ति में जीव कितने समय तक  रहता है उत्तर 32 नील,10 खरब,40 अरब वर्ष तक जीव मुक्ति का आनंद भोंककर फिर वापिस आता है।
वेविनार में आर्य समाज के प्रधान मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ, विमलेश वंशल वैदिही, अवधेश   प्रताप सिंह बैस,अभिलाष चंद्र कटियार,लोकेंद्र सिंह बैस,ध्यान सिंह यादव,जयपाल सिंह बुन्देला, बृजेन्द्र नापित शिक्षक  सहित सैकड़ों आर्यजन उपस्थित  रहें।
संचालन आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवं आभार रामकुमार सेन अजान ने जताया।

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