कविता का नामखुशियों में खामोशी का त्यौंहार
कविता का नाम
खुशियों में खामोशी का त्यौंहार
सब अपने-अपने
शहर लौट रहें हैं
दीपावली का शोर मचा हैं
मेरे खाली घर में खाली सिर्फ सामान बचा हैं
मौत के शोर ने
खुशियों को दफन किया हैं
समाज ने अपना तेज खो दिया हैं
आपस में एक-दूसरे से झगड़ा किया हैं
सब अपने-अपने
शहर लौट रहें हैं।
शहिद हुए दीपों को वापस कैसे लेकर आए
शहिदों के घर दीपावली के दीपों को कैसे जलाएं
घर-घर दीप जलें हैं
वो घर क्यों अकेला हुआ हैं
मौत के शोर ने
खुशियों को दफन किया हैं
खुशियों में खुश होकर
सारा जहां झूम रहा हैं
मेरे घर में आसमान आकर सज़ा हैं
दीपों से दीप जलें हैं
अपने अपनों से मिलें हैं
त्यौंहार से त्यौंहार आकर मिलें हैं
सब अपने-अपने
शहर लौट रहें हैं।
जलतें हुएं दीपों से जगमगाया हुआ
ये सारा जहां हैं
खुशियों में खामोशी बड़ी घनी सी हैं
मेरे अपनों की बहुत ही भावुक सी कमी हैं
शहिद हुए दीपों को कैसे वापस लेकर आए
खुशनुमा खुशियों को अपने घर पर क्या कहकर बुलाएं
त्यौंहार की रोनक बनी हुई हैं
उस सामने वाले घर में कोई नहीं हैं
उस घर में भी कोई अपना लौट रहा हैं
ऐसा घना सा शोर हो रहा हैं
मेरी दुआएं एक समान हैं
रब की रहमत में ही ये सारा जहां हैं
सब अपने-अपने
घर लौट रहें हैं।
दीपावली दीपों से सजी हैं
खुशनुमा खुशियों में बहुत ही घनी सी खामोशी हैं
सच बनकर दीपावली का स्वागत किया जाएं
सच नाम के दीपक से ही
सच्चाई की जीत पर खुशी जताई जाएं
दीपों से जगमगाया दीपावली का त्यौंहार मनाया जाएं
शहिद हुए दीपों को कैसे वापस लेकर आएं
खुशियों में खामोशी का त्यौंहार मनाया जाएं
एक दीपक से दूसरा दीपक जलाया जाएं
अपने घर की रोशनी से
एक-एक घर रोशन किया जाएं
दीपों से दीप जलें हैं
अपने अपनों से ही मिलें हैं
सब अपने-अपने
शहर लौट रहें हैं।
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