एकान्त नहीं हूंएकान्त नहीं हूंअकेली नहीं हूंना अवला सी नारी हूं

एकान्त नहीं हूं
एकान्त नहीं हूं
अकेली नहीं हूं
ना अवला सी नारी हूं
तेजधार हूं
वहीं से 
तपती हुई
एक तेज़ तलवार हूं

जन्म से जीवन जीया
हर एक सच का सामना किया
दूध के नाम पर
चाय पिया
बेटा -बेटी के बीच में घना सा भेदभाव हुआ
तब से जीकर
आज को जीआ
भविष्य की कल्पना बुन रही हूं
हाथों की उंगलियों से 
एकान्त नहीं हूं
अवला नहीं हूं
अपनी पहचान अपने जन्म से ही लिख रहीं हूं
अपनी जिन्दगी
अपने आप से होकर
अपने ही नाम कर रहीं हूं
बेटा -बेटी का भेद-भाव
खत्म हो
यही आज तक प्रयास कर रही हूं
एकान्त नहीं हूं
अकेली नहीं हूं

जीत से ही इतिहास लिखा हैं
सच से ही
अपने आपको लिखा हैं
मैंने
सबकुछ सीख लिया हैं
कदम-कदम चलकर ही
सबकुछ जीत लिया हैं
कोशिशों से डरती नहीं हूं
चलते-चलते थकतीं नहीं हूं
दौड़ में दौड़कर ही
मैंने हर एक बाज़ी को जीतकर
अपने नाम किया हैं
नारी रूप की तेजधार हूं
अवला नहीं हूं
जीती-जागती
तेज़ तलवार हूं
एकान्त नहीं हूं
अवला नहीं हूं

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