पता नहींराजनीति भी क्या हैंकिसकी संगी और किसकी सोतेली.

पता नहीं
राजनीति भी क्या हैं
किसकी संगी और किसकी सोतेली.

गरीब की 
कोई नहीं हैं
ना संगी और ना सोतेली
पता नहीं
राजनीति भी क्या हैं.


आंख मिचौली का 
खेल चल रहा हैं
कभी किसी के साथ चल रहा हैं
कभी किसी के साथ चल रहा हैं
गरीब इंसान
मर-मर कर अपना आखिरी दम तोड़ रहा हैं
पता नहीं
राजनीति क्या हैं.

अमीर -अमीर होकर
आगें बढ़ रहा हैं
गरीब के घर से भूखी गरीबी का एक-एक  आंसू रो रहा हैं
चमत्कार कहीं नहीं
भगवान जी के हाथ भी
कुछ नहीं हैं
सरेआम घोर कलयुग जो रहा हैं
पता नहीं
राजनीति क्या हैं
किसकी संगी हैं और किसकी सोतेली.


राजनीति में राज से भी राज नहीं हैं
एक से एक राजनीतिक कम नहीं हैं
आपस में मिलकर
कोई किसी के भी साथ नहीं हैं
खाली पेट में भी कुछ नहीं हैं
जो भी हैं
सबकुछ भरें हुए पेट में ही हैं
गरीब के नाम गरीबी हैं
वही उसकी भरी हुई तिजोरी हैं
खाली पेट में
कुछ भी नहीं हैं
भरें हुए पेट में सबकुछ हैं
दुःख की बात नहीं
चलन ही पुराना हैं
आज तक
कौन किसको जाना हैं
नाम से नाम बदल रहें हैं
कदम-कदम पर पहचान बदल रहें
शोर आवाजों का हैं
वही से सबके सब खुलेआम हों रहें
गरीब कि फिर्क हैं
वो वे वजह मर रहा हैं
खाली पेट की 
आधी रोटी खाकर
भरें हुए पेट में सबकुछ छुप रहा हैं
यही काला घोर हों रहा हैं
पता नहीं
राजनीति किसकी संगी हैं और किसकी सोतेली हैं.

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