*तेरे औऱ भी पास.....!*
*तेरे औऱ भी पास.....!*
भगवन.....मानो या न मानो....!
यह मेरे अफसोस का विषय है....
कि....चाटूकारिता के इस दौर में...
ना मैं ही हो पाया किसी का खास
ना ही कोई बन पाया....!
मेरा अंधभक्त सा दास.....
आप करो इस बात का विश्वास,
कि डालता नहीं कोई भी मुझे घास...
यह....अच्छा है या बुरा....?
स्थिति जानने को....या फिर....
खुद की संतुष्टि को....
अक्सर ही....करता रहता हूँ...मैं टॉस
रोजगार भी जो तुमने नवाज़ा....!
उसमें भी अधिकार नहीं है मेरे पास
जिधर घुमाता हूँ गरदन....!
वहीं दिखता है ख़ुद का मान-मर्दन...
किसी न किसी व्याकुल आत्मा का
मुझे अक्सर होता है भास....
आघात भी उसका प्रबल है इतना कि
तन में अब ना हड्डी बची है,
ना शेष है कोई मांस.....
कर्म कोई भी मेरे...अच्छे हों या बुरे..
नहीं आते किसी को रास....
सोचिए भगवन....आज के दौर में...
कितना झेल रहा हूँ मैं त्रास....?
एक तुम पर ही तो भरोसा था भगवन
एक तुम ही तो रहे हमेशा मेंरे आस...
रहना भी चाहा सदा ही तुम्हारे पास..
पर...मन अब होता जा रहा है उदास
हर ओर दिखता है...अँधेरा ही अँधेरा
कहीं नहीं दिखता मुझे...कोई प्रकाश
पर....शिकायत भी नहीं है तुमसे....
क्योंकि....जो भी लगाई मैंने,
कभी कोई भी अरदास....!
भगवन पूरी हुई मेरी....हर एक आस
पर दुनिया तो हरजाई है न....!
यहाँ आदत में शुमार है बकवास...
राह चलते....करते हैं कमेन्ट...
बोल जाते हैं अक्सर....भाई...!
किस्मत ऐसी होती अपनी भी काश..
उलाहना से इनके परेशान मैं.....
अक्सर देखने लगा हूँ मुक्त आकाश
और....इस अनन्त में ढूँढने लगा हूँ...
कि....मिल जाए कहीं मुझको...
कोई एक स्वच्छंद आवास....!
भगवन....यह भी है विश्वास...
पूरी होगी मेरी यह आस...और...
इसी बहाने....मैं...और मेरा मन...
सब कुछ होगा....तेरे और भी पास...
सब कुछ होगा....तेरे और भी पास...
रचनाकार....
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ
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