आओ फिर से लिखना शुरू करें–डॉ मंजू लोढ़ा, वरिष्ठ साहित्यकार

आओ फिर से लिखना शुरू करें
–डॉ मंजू लोढ़ा, वरिष्ठ साहित्यकार

बढ़ती उम्र के साथ मैंने महसूस किया कि मेरी स्मरण शक्ति पहले जैसी नहीं रही। पहले जो कविताएँ मैं लिखती थी, वे सहज ही याद हो जाती थीं। मंच पर कहीं अचानक बोलना पड़ता तो भी शब्द स्वयं निकल आते थे। अब वही कविताएँ याद नहीं रहतीं।

शुरुआत में मैंने सोचा – शायद उम्र का असर है, या मैं घर-परिवार व अन्य कामों में उलझी हूँ। पर मन को यह उत्तर संतुष्ट नहीं कर सका। मुझे लगा कि कहीं मैं बहाने तो नहीं ढूँढ रही हूँ?

एक दिन अचानक एहसास हुआ — मैंने लिखना लगभग छोड़ ही दिया है। अब जो भी विचार आते हैं, मैं मोबाइल में बोलकर लिखवा लेती हूँ। सारा ध्यान इस बात पर रहता है कि गलती तो नहीं हुई, उसे सुधारती हूँ, शब्द सही हैं या नहीं। इस प्रक्रिया में कविता का भाव और सार मुझसे छूटने लगता है।

पहले जब मैं कलम से कागज पर लिखती थी, हर शब्द को बोलते हुए, महसूस करते हुए लिखती थी। यही अभ्यास मेरे मस्तिष्क में शब्दों को गहराई से बिठा देता था। इसलिए कविताएँ याद रहती थीं। अब लिखना छोड़ दिया, इसलिए याददाश्त भी कमजोर होने लगी।

मैंने निर्णय लिया — आओ फिर से लिखना शुरू करें। चाहे बाद में टाइप करें, पर पहली रचना हाथों से ज़रूर लिखें। इससे हमारी स्मरण शक्ति तेज़ होगी और लेखन की आत्मा भी बनी रहेगी।

आज हम सभी पढ़ते बहुत हैं, पर लिखते नहीं हैं। हमारा अधिकांश समय स्क्रीन पर बीतता है। क्यों न उससे थोड़ी दूरी बनाएँ? दिन में दो-चार घंटे अपने दिमाग को भी आराम दें। जैसे हम डिटॉक्स के लिए बॉडी को समय देते हैं, वैसे ही मन को भी शांत करने का समय दें।

मैंने देखा है — बड़े कलाकार, कवि और वक्ता धारा प्रवाह बोलते हैं। उनका मन और मस्तिष्क मानो कंप्यूटर बन गया हो। ऐसा अभ्यास और निरंतरता से ही संभव है।

आइए, हम सब भी बढ़ती उम्र के साथ अपने दिमाग को चुस्त, ताज़ा और सक्रिय रखें। कलम उठाएँ, कागज़ पर लिखें, स्मरण शक्ति की धार को पैनी करें। यही हमारी रचनात्मकता और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को संबल देगा।

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