कैसे भुलाइ तोहैइं मतवा,संसिया संसिया में मोरे तु समाई।।
कैसे भुलाइ तोहैइं मतवा,संसिया संसिया में मोरे तु समाई।।
कैसे भुलाइ तोहैइं मतवा,संसिया संसिया में मोरे तु समाई।।
पालनहार तुहीं जग क अंचरा कइ छांह के कइसे भुलाई।।
हे जगतारिणी कष्ट निवारिणी,दास गिरीश पुकारत माई।।
छाड़ि द आसन टेर सुना,जिन देर करा चलि आवा तू धाई।।
जोरि के हाथ नवाइ के माथ,निहारत राह करइ अगुवानी।।
हे गुनआगर हे सुखसागर हे जननी जगदम्ब भवानी।।
कोमल भाउ द बुद्धि विवेक द, कोमल भाषा द कोमल बानी।।
आरत नाद गिरीश पुकारत हे ममतामयी शीतला रानी।।
मोल नहीं अनमोल दुलार मोरे जिनगी क सुकोमल थाती।।
हे ममतामयी तोर ऋणी जग रूप अनूप हिया को लुभाती।।
माई क निर्मल नेह गिरीश सनेह क गंग बहइ दिन राती।।
ताप मिटाइग पाप नसाइग तृप्त मना भइ शीतल छाती।।
आगत स्वागत में जग झूमत नाचत गावत शंख बजाई।।
ढ़ोल मजीर मृदंग बजइ पंचरा अंचरा फैइलाइ के गाई।।
जोरि के गांठि गिरीश उमा पद पंकज पूजि महासुख पाई।।
आवा घरा के अजोर करा अंन्हियार मिटाइद शीतला माई।।
शीतल छाती करा शितला घन छाँह द बांह गहा महतारी।।
पीर अपार अधीर मना घन तीनउं ताप के देतु नेवारी।।
आकुल ब्याकुल नैन निहारत हे ममतामयी तोरी दुआरी।।
हे जगदम्ब विलम्ब करा जिन, लेतु गिरीश उमा के उबारी।।
शीतल छांह कपारे मोरे अंचरा महतारी क घाम का लागे।।
कालजयी दुर्गा जग जाहिर नाउं सुने महाकालउ भागे।।
शीश नवाइ गिरीश उमा कर जोरि गोहार लगावत आगे।।
पूछत कातर भाउ निहारत भागि हमार भला कब जागे।।
नेंह दुलार द हे जननी जिनगी के संवारि द हे मोरि माई।।
आस भरोस तोहार हमइ दरबार के छाड़ि कहाँ अब जाई।।
पूत अबोध के बोध धराइद, हे जननी हमहुँ मुसुकाई।।
गावत हारि ग वेद पुराण गिरीश भला गुन का हम गाई।।
--------------गिरीश जौनपुर
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