*महाकुम्भ में जो हुआ वो असहनीय है*
*महाकुम्भ में जो हुआ वो असहनीय है*
इस समय हमारे देश भारत में महाकुम्भ का महापर्व चल रहा है|सरकार ने उसे सजाने सवारने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी|निर्विघ्न ये पर्व सम्पन्न हो जाय, इसलिए तमाम सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम भी किए थे|लेकिन मौनी अमावस्या के दिन कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा विघ्न उत्पन्न कर ही दिया गया|और उस समय जो हुआ वह असहनीय और हृदयविदारक है|उसकी सराहना तो किसी भी तरह नहीं की जा सकती|लेकिन यह बात आदिकाल से चरितार्थ होते आ रही है कि सदैव पुण्य कर्म में ही विघ्न उत्पन्न होता है|सुर असुर सभी पुण्य कर्म में विघ्न उत्पन्न करते आये हैं|असुर ही नहीं सुर भी विघ्न उत्पन्न करते हैं|इतिहास गवाह है,कई बार असुर सुर वेश धारण कर पुण्य कार्य में वाधा डालने की कोशिस किए हैं|जैसे हनुमान जी के पुण्य कार्य में वाधाएँ उत्पन्न हुई थी|चाहे समुद्र पार करते हुए, चाहे संजीवनी लाते समय|उनके पुण्य कार्य में दैवी और आसुरी शक्तियाँ दोनो वेश बदलकर बाधा उत्पन्न की थी|उसी तरह राम राज्याभिषेक के समय देवगण ही बाधा उत्पन्न किए|कहने का मतलब ए कि आसुरी शक्तियाँ ही नहीं पुण्य कार्य सकुशल सम्पन्न न हो,इसलिए दैवी शक्तियाँ भी कुचक्र रचती बाधा उत्पन्न करती आई हैं|इसके अनगिनत प्रमाण हमारे इतिहास में व शास्त्रों में भरे पड़े हैं|
वैसे ही आज हमारे देश में जो दिव्य भव्य व नव्य महाकुम्भ का महापर्व चल रहा है,उसे विफल बनाने के लिए दैवी और आसुरी मांसिकता के कुछ तुच्छ लोग पर्व शुरू होने से पहले से ही लगे थे|सरकार जितनी मुस्तैदी से व्यवस्था सुदृढ़ करने में लगी थी,उससे अधिक मुस्तैदी से कुत्सित मांसिकता वाली दैवी और आसुरी शक्तियाँ उसे बिगाड़ने में लगी थीं|जिसका परिणाम आमजन के लिए और सरकार के लिए भले ही पीड़ादायी और दुखदायी है|पर कुत्सित मानसिकता वाली दैवी और आसुरी शक्तियों को मौज दे गयी है|इन उपरोक्त कुत्सित मानसिकता वाले सनातन द्रोहियों को आमजन की पीड़ा से देश की बदनामी से कुछ लेना देना नहीं है|ये अपनी सफलता से और सरकार की छोटी सी असफलता पर कत्थक नृत्य कर रहे हैं|ये इस महाकुम्भ पर्व की भव्यता दिव्यता व नव्यता से जितने दुखी थे|आज उससे कहीं दस गुना खुशी हुए हैं|क्योंकि मनकामना पूर्ण हुई है|बिल्ली की भाग्य से शिकहर टूट गई है|इनको उन तमाम मासूमों की मौत से कुछ लेना देना नहीं|न ही भारत के गौरव से कुछ लेना देना है|जिस आयोजन की आज पूरी दुनियाँ सराहना करते नहीं थक रही है|उसी आयोजन को आज के कालनेमि रूपी संत जितनी भी बन पड़ रही है,बुराई करते नहीं थक रहे हैं|मौनी अमावस्या के दिन जो भी हुआ जैसे भी हुआ पीड़ा और दुख के शिवाय कुछ नहीं हुआ|फिर भी संतोष की बात ये है कि सरकार की तत्परता के चलते बहुत बड़ी जनहानि होने से बच गई|जहाँ एक छोटे से क्षेत्र में करोड़ों लोग आस्था की डुबकी लगाने एकत्रित हुए हों वहाँ यह घटना मामूली ही कही जायेगी|और सरकार की तारीफ करनी पड़ेगी कि समय रहते सब कुछ सम्हाल लिया|बहुत बड़ी घटना होने से रोंककर फिर से व्यवस्था को सुचारु रूप से संचालित करवा दी|और लोग शांतिपूर्ण ढंग से स्नान कर अपने घरों को आये|
इस घटना से यह सिद्ध हो रहा है कि असुर तब भी थे अब भी हैं|कुत्सित मानसिकता वाले देव तब भी थे अब भी हैं|जिसे आज के हमारे शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद और उनके जैसे साधू लोग सिद्ध कर रहे हैं|जिसे इस घटना पर शोक व्यक्त कर लोगों से शांति पूर्वक स्नान करने की अपील करनी चाहिए|वही राजनीति कर रहा है|और व्यवस्था पर अंगुली उठाते हुए वीआईपी मुवमेंट पर सवाल खड़ा कर रहा है|जबकी खुद राजाओं जैसा जीवन जी रहा है|खुद आम जन की तरह सबके साथ स्नान नहीं करता,अपने लिए अलग से व्यवस्था लिया हुआ है|वही वीआईपी यानी मंत्रियों सांसदो की व्यवस्था पर अंगुली उठा रहा है|यह नहीं कह रहा है कि सभी तरह के विगत के शाही और आज के अमृत स्नान को जनहित में बंद कर दिया जाय|जिसको भी स्नान करना है,वो आमजन की तरह ही संगम में डुबकी लगाये|किसी के लिए भी अलग से न घाट बनेंगे न अलग से कोई व्यवस्था की जायेगी|जिनको आम जन की तरह आम जन के साथ स्नान करना है वही आये|जिनको अलग से व्यवस्था लेनी है वह अपने लिए खुद भगीरथ की तरह संगम का निर्माण कर ले|लेकिन ऐसा नहीं कहेंगे|ऐसा कहेंगे तो अपना नुकसान है|नुकसान है कि जो अपने लावलश्कर के साथ प्रदर्शन करते हुए संगम तक रथ हाँथी आदि पर जाते हैं वह बंद हो जायेगा|और जब बंद हो जायेगा तो मुझे जानेगा कौन|इस लिए *पर उपदेश कुशल बहु तेरे* वाले सिद्धांत पर चल रहे हैं|जबकी मंत्रियों से अधिक समस्या यही शाही स्नान करने वाले ढोंगी साधु संत लोग ही हैं|बात बात पर धर्म के नाम पर सरकार को ब्लैकमेल करते हैं|और आज सरकार पर ही दोष भी मढ़ रहे है|खुद के आचरण को नहीं बदल रहे|खुद राजसी ठाट चाहते ही नहीं जी भी रहे हैं|आज हमारे जितने ढोंगी सनातनी मठाधीश हैं,सबके सब राजाओं जैसा जीवन जी रहे हैं|सिंहासन पर बैठते हैं,मखमल पर सोते हैं,छप्पन भोग खाते हैं,सुरक्षा और सेवा के लिए तमाम लोगों को लगा रखें है|सेव सेविकायें लगा रखें हैं जिसमें से दासत्व की झलक दिखती है| तब के राजा भी यह सुख नहीं भोगे थे|जो आज के ढोंगी साधू संत भोग रहे हैं|आदिकाल के हमारे जो ऋषि मुनि साधू संत थे सब वन में झोपड़ी बनाकर रहते थे|आडम्बर से दूर,सात्विक भोजन करते थे|पकवान नहीं|कुश सरपत आदि की चटाई उनका आसन होता था|और वही विस्तर भी|आज की तरह नहीं|आज तो राजा भी वह सुख नहीं पा रहा जो साधू संत भोग रहे हैं|
इसलिए सभी संत विरादरी से निवेदन है कि पहले वीआईपी कल्चर को खुद त्यागें|क्योंकि वीआईपी कल्चर नेताओं और राजाओं के लिए है|फिर ज्ञान दें|महाकुम्भ मेला में जो भी हुआ गलत हुआ है|मगर उसके बाद सब कुछ सही होने के बाद जो दैवी और आसुरी शक्तियों द्वारा देश विदेश में जो रायता फैलाया जा रहा है,वह और गलत हो रहा है|यदि उसका समर्थन नहीं किया जा सकता तो इसका भी नहीं किया जा सकता|हमारी संवेदनायें उन दुखी परिवारी जनों के साथ है जो उस दिन दुर्दिन के शिकार हुए हैं|और उन पुण्य आत्माओं को जो उस दिन मोक्ष को प्राप्त हुईं|उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और ईश्वर से विनती करता हूँ कि उन सभी पुण्य आत्माओं को जो अपना शरीर संगम क्षेत्र में त्यागी हैं,उन्हें अपनी शरण में लें|और महाकुम्भ पर्व को सकुशल निर्विघ्न सम्पन्न करें|
पं.जमदग्निपुरी
SATYA VACHAN
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