कार्यकारिणी मीटिंग के साथ कोशिश की हुई मासिक काव्यगोष्ठी

कार्यकारिणी मीटिंग के साथ कोशिश की हुई मासिक काव्यगोष्ठी 
जौनपुर 
कोशिश  की मासिक काव्य गोष्ठी  बाबू रामेश्वर प्रसाद सिंह सभागार रासमंडल में व्यंग्यकार सभाजीत द्विवेदी प्रखर  की अध्यक्षता में आयोजित हुई। बैठक में वार्षिक समारोह 2 फ़रवरी 2025 को आयोजित करने का निर्णय लिया गया।
जनार्दन प्रसाद अष्ठाना  ने माँ वीणा पाणि की वंदना की और अपनी रचना---जीवन नदिया  की धार/कितनी इसकी रफ्तार/बहती ही जाये है/उतरेंगे हम किस पार/जीवन  के उतार-चढ़ाव  का परिदृश्य खींच गई। गिरीश कुमार गिरीश  का मुक्तक--असंभव है कपट छल से सुकूं ना चैन पाओगे/निगल जायेगी दलदल हवश की  गर डूब   जाओगे/मुखौटे में न खो जाये तुम्हारा रूप,रंग,चेहरा/मुखौटे पर मुखौटा यार कब तक तुम लगाओगे।समाज में व्याप्त पांखड पर करारा प्रहार  कर गया।रामजीत मिश्र  का शेर-तामीर हो गई दीवारें,छत भी डाल लिया/शरायत क्या हैं नहीं जाना,आशियां  के लिए। मानवीय मूल्यों  के क्षरण पर सटीक टिप्पणी करत लगा तो वहीं प्रो.आर.एन.सिंह  की पंक्तियाँ...अच्छे-भले शरीफों  को अब कोई नहीं पूछने वाला/ओछी हरकत करने वाला,माननीय किरदार हो गया।सामाजिक विसंगति पर चोट कर गई। अशोक मिश्र  का दोहा---सरसो शरमाई बहुत सुन गेहूँ की बात/चलो बसंती हम करें जल्दी फेरे सात/प्रकृति का मनोरम चित्र खींचा।राजेश पांडेय  की रचना--काहे कंगना गढाये/न भाये अंगना/दाम्पत्य  के नोक-झोंक  की बानगी पेश कर गई तो अनिल उपाध्याय  की क्षणिका---पारा लुढका,जाड़े  का है योग/ठंड  से बचने  के लिए करें आजवाइन  का प्रयोग। गोष्ठी  को आनंदित कर गई।  नंदलाल समीर का शेर--पहले रहते थे कच्चे घरों में लोग/लेकिन बात-बचन  के पक्के  होते थे/बदलते परिवेश पर कटाक्ष कर गया।फूलचंद भारती  और आलोक रंजन सिन्हा  की रचना  भी खूब पसंद आई। जेब्रा अध्यक्ष  संजय सेठ विशिष्ट अतिथि  की भूमिका में रहे।संचालन अशोक मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापन डाक्टर विमला सिंह  ने  किया।

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