मुहब्बत से पीछे कभी ना हटेंगे।। यकीनन कुहासों के बादल छंटेंगे।।
मुहब्बत से पीछे कभी ना हटेंगे।।
यकीनन कुहासों के बादल छंटेंगे।।
सिपाही हैं हम अपने अहले वतन के-
कटेंगे भले पर न हरगिज़ बंटेगे।
अगर टुकड़े -टुकड़े में हम सब बटेंगे।।
तो कैसे कुहासों के बादल छंटेंगे।।
किसी संत ने खुल के सच ये कहा है-
बटेगें अगर तो यकीनन कटेंगे।।
नेह का बीज डालिए दिल में।।
मत गुबारों को पालिये दिल में।।
दिल में रहिये मगर सलीके से-
दर्द बन कर न सालिये दिल में।।
अधूरी चाह है कुछ भी तो कर नहीं पाए।।
थके थे पांव मगर हम ठहर नहीं पाए।।
दवा दुआ भी बेअसर गिरीश क्या करते-
तमाम ज़ख़्म हैं दिल पर जो भर नहीं पाए।।
ज़िन्दगी मौत में है द्वन्द्व सांस-सांस छले।।
वर्फ़ की चोटियों पे वक्त नंगे पाँव चले।।
पश्चिमी सभ्यता ज़हरीली हवा नफ़रत की-
आग ही आग धुआँ शोर शहर् गाँव जले।।
किसी को हाले दिल, कैसे सुनाऊँ, गैर मुमकिन है।।
खुदी को खुद की नज़रों से गिराऊं,गैर मुमकिन है।।
मेरे ख्वाबों ख़यालों में मेरे दिल में समाये हैं-
न आये याद उनकी, भूल जाऊँ, गैर मुमकिन है।।
--------------गिरीश जौनपुर
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