‘एक घोड़ा छह सवार’ का मंचन**‘रंगशीर्ष जयदेव नाट्योत्सव’ के अंतर्गत दूसरी प्रस्तुति*

*‘एक घोड़ा छह सवार’ का मंचन*
*‘रंगशीर्ष जयदेव नाट्योत्सव’ के अंतर्गत दूसरी प्रस्तुति* 

*दिल्ली विकास मिश्र*
नई दिल्ली, आत्मा राम सनातन धर्म महाविद्यालय (दिल्ली-विश्वविद्यालय) की नाट्य समिति ‘रंगायन’ द्वारा अपनी यात्रा के बीसवें वर्ष में प्रवेश करने के अवसर पर इस वर्ष पाँच दिवसीय नाट्य उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। जिसके दूसरे दिन कल 30 जनवरी की संध्या श्रीराम सेंटर, मंडी हॉउस में रंजीत कपूर द्वारा लिखित तथा वशिष्ठ उपाध्याय द्वारा निर्देशित नाटक ‘एक घोड़ा छह सवार’ का सफल प्रदर्शन किया गया। इस नाटक में कॉलेज के वर्तमान छात्रों ने हिस्सा लिया। इस प्रस्तुति पर टिप्पणी करते हुए कॉलेज के प्रिंसिपल प्रो. ज्ञानतोष कुमार झा ने कहा कि इस नाटक में फ्रेशर विद्यार्थियों से जिस तरह अभिनय करवाया गया है वह वशिष्ठ उपाध्याय की निर्देशकीय क्षमता का प्रमाण है।नाटक 'एक घोड़ा छह सवार' इस तथ्य को शिद्दत से सामने लाता है कि कैसे मजबूरी में किया गया कार्य किसी व्यक्ति को हास्यजनक स्थितियों में डाल देता है। रंजीत कपूर द्वारा रूपांतरित यह नाटक जॉर्ज एबट और जे.सी.होम के लिखे इस अमेरिकी नाटक 'थ्री मैन ऑन ए हॉर्स' का हिन्दी नाट्य रूपान्तर है। रंजीत कपूर ने ‘दर्पण’ कानपुर के लिए इसे वर्ष 1988 में पहली बार निर्देशित किया था। नाटक एक ऐसे व्यक्ति पर केंद्रित है जिसे पता चलता है कि उसके पास रेस में विजेता घोड़े को चुनने की प्रतिभा है, जबकि वह खुद कभी दांव नहीं लगाता। यह नाटक एक हास्यप्रद प्रहसन है जिसमें जीवन की विडम्बनाओ का प्रयोग किया गया है। नाटक के पात्र मानवीय कमजोरियों और संयमों के संग्रह का प्रतीक हैं- लालची, बेईमान, स्वाथीं।कहानी एक व्यावसायिक कवि अरुण बक्शी के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक जुनूनी लेकिन ग्रीटिंग्स कार्ड छापने वाले बॉस जेजी पदमजी के लिए काम करता है और ग्रीटिंग कार्ड्स पर कविताएं लिखता है। अरुण को दिन की रेस के लिए विजेता घोड़ों का चयन करने का एक अजीब शौक है। वह कभी भी रेसकोर्स में नहीं जाता या दांव नहीं लगाता, उसे बस जीतने वाले घोड़ों का चयन करने की आदत है और वह हर दिन कार्यालय जाते समय भीड़ भरे सार्वजनिक बस में ऐसा करता है। वापस जाते समय वह विजयी चयन की पुष्टि करता है। वह कोई लालची आदमी नहीं है और अपनी इस अनोखी क्षमता से पैसा कमाने के बारे में भी नहीं सोचता।रेस खेलले वाले गुंडों से उनकी मुलाकात रेस कोर्स होटल में होती है अब वे सभी अरुण के माध्यम से अमीर बनना चाहते हैं। जबकि उसकी पत्नी चिंतित है कि उसने उसे छोड़ दिया है क्योंकि वह उसके साथ बहस करती थी। उधर पदम जी को लगता है कि उसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनियां अरुण और उनकी अद्भुत कविताओं को चुराने की कर रही हैं। सबकी अपनी अपनी कहानी के चक्कर में ऐसी कोशिश स्थितियां बन जाती हैं जो हमें गुदगुदाती हैं।निर्देशक वशिष्ठ उपाध्याय ने अपनी इस प्रस्तुति में समकालीन राजनीतिक और सामाजिक स्थितियों पर चुटीले व्यंग्य का प्रयोग कर दर्शकों की जमकर सराहना बटोरी। अपने अभिनय से जिन कलाकारों ने तालियाँ बटोरी, उनमें हर्ष पहड़िया, गुंजन शर्मा, पार्थ गोयल, युवराज राय, आस्था उपाध्याय, पारस चौहान, देव गर्ग, आदित्य डे आदि प्रमुख थे। इस नाटक में कॉलेज के नृत्य एवं संगीत की टीम ‘कलाश्री’ एवं ‘सारंग’ की सहभागिता उल्लेखनीय थी।नाटक के अंत में ‘रंगायन’ की संयोजक प्रो. विनीता तुली ने बताया कि कल यानी 31 जनवरी को श्रीराम सेंटर में मन्नू भण्डारी लिखित नाटक ‘महाभोज’ का मंचन किया जाएगा जिसका निर्देशन चर्चित निर्देशक सुमन कुमार ने किया है। दर्शकों के लिए एंट्री फ्री है।

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