वरिष्ठ साहित्यकार,छंदकार एडवोकेट गिरीश श्रीवास्तव के खूबसूरत मुक्तक
वरिष्ठ साहित्यकार,छंदकार एडवोकेट गिरीश श्रीवास्तव के खूबसूरत मुक्तक
रेत पर अंगुलियों से छवि सुघर ऊंकेर लिया।।
अकेला पाके मुझे फिर ग़मो ने घेर लिया।।
मुझे उम्मीद नहीं थी, यकीन होता नहीं-
नज़र मिला के नज़र से नज़र को फेर लिया।।
यक़ीन मानों मेरे दिल को भा गये होते।
अब्र बनकर मेरे दिल पर जो छा गए होते।।
सता रही थी मेरी याद अगर तुमको सनम-
मना किया था कौन आप आ गए होते।।
रस्क करती गुनगुनाती मुस्कराती ज़िन्दगी।।
दिल में सोई भावनाओं को जगाती ज़िन्दगी।।
देख कर हैरान हूँ इस दौर में ज़िन्दादिली
गंध मोहक फूल बन कर के लुटाती ज़िन्दगी।।
नाचीज़ की दुनिया में शोहरत है आप से।।
हासिल है बाखुदा मुझे इज्जत भी आप से।।
खुलकर के दिल की बात कह सका नहीं गिरीश-
नफ़रत तो दिखावा है मुहब्बत है आप से।।।
नमन्
कामनाओं का मैं शमन कर लूँ।।
इतनी शक्ति दे प्रभु सहन कर लूँ।।
ज़िन्दगी काम किसी के आये-
हंसके दायित्व निर्वहन कर लूँ।।
-------------गिरीश
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