प्रेमचंद की याद में,,,,,,,,,,,,,,, हौंसिला प्रसाद सिंह अन्वेषी

प्रेमचंद की याद में
,,,,,,,,,,,,,,, हौंसिला प्रसाद सिंह अन्वेषी
 हिंदी के अमर साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की 143 वीं जयंती 31 जुलाई 2023 को है ।जीवन की विसंगतियों एवं ज्ञानार्जन की अभिरुचि ने उन्हें उपन्यास सम्राट, कलम का सिपाही एवं महान कथाकार बना दिया।
वाराणसी के लमही  गाँव में 1880में जन्म लेनेवाले इस महान कथाकार ने भारतीय किसान जीवन भारतीय सामंतवाद धार्मिक पाखंड व सामाजिक बुराइयों के खिलाफ तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन को समर्पित उनकी कलम से निकली कहानियों में सर्वप्रथम 1907 में पांच कहानियों का एक संग्रह सोजे वतन निकाला ।जिसका विरोध उन्हें धनपत राय से प्रेमचंद में बदल दिया ।सोजे वतन के जलाए जाने पर दया नारायण निगम  संपादक (जमाना) ने उन्हें प्रेमचंद नाम दिया।
 मुंशी प्रेमचंद अपने विचारों में इतने परिपक्व व संकल्पबद्ध थे  कि अपने जीवन के व्यक्तिगत दुखों को दरकिनार कर तीन नाटक ,तेरह उपन्यास साढ़े 300 से ज्यादा कहानियां ,कुछ संपादकीय ,कुछ भूमिकाएं  ,10 बाल पुस्तकें और अपने निबंधों विचारों भाषणों से पूरे हिंदी साहित्य को समृद्धि किए। उनके अनमोल उपन्यासों में रंगभूमि ,कर्मभूमि, निर्मला ,प्रेमाश्रम ,सेवा सदन, कायाकल्प ,गबन गोदान और मंगलसूत्र (अधूरा) आदि चर्चित हैं। संग्राम , कर्बला और प्रेम की वेदी उनके प्रसिद्ध नाटक हैं।
कहानियों में कफन ,पूस की रात ,पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी ,शतरंज के खिलाड़ी ,दो बैलों की कथा, बूढ़ी काकी व ईदगाह जैसी अमर कहानियां हैं।
उनका प्रगतिशील लेखक संघ के  अधिवेशन 1936 में दिया गया अध्यक्षीय भाषण हम साहित्यकारों के लिए गाइड की तरह है। उनकी पत्रकारिता बेबाँक बेजोड़ और वक्त के आगे आगे चलने वाली मशाल है।
दैनिक जागरण और हंस के माध्यम से समाज, स्वाधीनता आंदोलन साम्राज्यवाद विरोध और साहित्य की दिशा निर्धारित करते हुए तमाम मानदंडों की स्थापना करने वाली उनकी लेखनी अद्वितीय है। अपने समय की मशहूर पत्रिका जमाना सरस्वती ,माधुरी ,मर्यादा, चांद ,सुधा और हंस में प्रकाशित प्रेमचंद के विचार व कहानियां पठनीय ही नहीं अनुकरणीय एवं संग्रहणीय हैं। हम साहित्यकारों का परम कर्तव्य है कि हम उन्हें पढ़ें  और उनसे शिक्षा ग्रहण करें।
  यह कहा गया है कि प्रेमचंद के निंदक मर जाएंगे लेकिन प्रेमचंद जीवित रहेंगे। जिस दलित विमर्श की शुरुआत 20 वीं सदी के अंतिम दशक से माना जाता है इसकी शुरुआत प्रेमचंद ने 1936 में ही कर दी थी।वे गांधी के पत्र हरिजन से दलित चेतना का जागरण करने लगे थे ।शोषण मुक्त समाज स्थापना के मार्ग में आने वाले अवरोधक तत्वों पर उन्होंने जमकर कलम चलाया। उनके विचारों का खजाना हमें कदम कदम पर प्रशिक्षित और सचेत करता चलता है ।जैसे कि डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूँगा हो जाता है ।दया मनुष्य   का स्वाभाविक गुण है। दुनिया में विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय नहीं है ।दुखियारी को हमदर्दी के आंसू भी कम प्यारे नहीं लगते। देश का उद्धार बिलासी द्वारा नहीं हो सकता ।दोस्ती के लिए अपना ईमान न बेचें ।अन्याय में सहयोग देना अन्याय के ही समान है ।अपमान का भय कानून के भय से कम नहीं होता। आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपने घर की याद आती है ।मैं एक मजदूर हूं जिस दिन कुछ लिख न लूँ उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं है ।मासिक वेतन पूर्णमासी का चांद होता है ,जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है। जिस बंदे को पेट भर रोटी नहीं मिलती उसके लिए मर्यादा और इज्जत ढोंग है। जब किसान के बेटे को गोबर में  बदबू आने लगे  तब समझ लो देश में अकाल पड़ने वाला है ।सांप्रदायिकता संस्कृति की खाल ओढ़कर आती है। साहित्य राजनीति के आगे आगे चलने वाली मसाल है । किसान का श्रम ही उसकी पूँजी है। इस तरह के अनेकों मूल्यवान विचारों अनुभवों से भरा पड़ा है प्रेमचंद साहित्य ।
इस तरह देखा जाए तो प्रेमचंद अपने समय के युग दृष्टा साहित्यकार थे। दुनिया का सबसे अनमोल रतन ,शेख मख नूर ,सांसारिक प्रेम और देश प्रेम ,यही मेरा वतन,  जैसी कहानियाँ  को देश का दर्द वाली या मातम वाली कहानियों के एक संग्रह सोजेवतन में संग्रहीत कर लेखक मुंशी प्रेमचंद किसान को मजदूर में बदलने की भविष्यवाणी कर गए थे। जो आज कारपोरेट युग में चरितार्थ होता दिख रहा है ।तीन काला कानून ,जल जंगल जमीन हड़पने का कानून था ।किसान है तो खेत है ,खलिहान है, अन्न है ,बाजार है ।श्रम की संस्कृति है, जहान है।और  जीवन है इसलिए जनता के इस शिक्षक के जन्मदिन  31 जुलाई पर उनके साहित्य की प्रासंगिकता को समझते हुए पूरा भारतीय समाज, हिंदी समाज ,साहित्य समाज उनका हार्दिक अभिनंदन करता है ।और उनसे प्रेरणा लेने के लिए संकल्पबद्ध होता है ।56 वर्ष की अल्पायु में इस अमर साहित्यकार  ने सन् 1936 में इसदुनिया को अलविदा कह दिया।और हमें लिखने की न केवल दृष्टि दी बल्कि अपने समय को पहचानते हुए उसके प्रति जागरूक होने की प्रेरणा भी  दी।शत् शत् नमन।

अन्वेषी 31 7 23

Comments

Popular posts from this blog

मीरा रोड मंडल द्वारा बीजेपी जिलाध्यक्ष किशोर शर्मा का सम्मान

बीजेपी नगरसेवक मनोज रामनारायण दुबे का सराहनीय काम

मीरा रोड में धूमधाम से मनाई गई महावीर जयंती