*पत्नी,गर्लफ्रैंड और अविश्वास....*सरकारी नौकरी में कहीं दूर....अकेले रहने वाले पतियों के पासजब कभी पत्नी पहुँचती है

*पत्नी,गर्लफ्रैंड और अविश्वास....*
सरकारी नौकरी में कहीं दूर....
अकेले रहने वाले पतियों के पास
जब कभी पत्नी पहुँचती है
सामान्य तौर पर उसकी ख्वाहिश
कुछ भी नहीं होती...लेकिन...
घर के एक-एक सामान पर
उसकी उपयोगिता और
उसके सापेक्ष कदरदान पर
वह दृष्टिपात अवश्य करती है....
मौका निकाल कर-नजरें बचाकर
मोबाइल का व्हाट्सएप संदेश,
हिसाब-किताब की डायरी
जरूर चेक करती है.....!
(जमाना बदल गया है न....
पहले चिट्ठियां तलाशती थी...)
और खोज लेती है....
अपने मतलब की बातें
शिकायत और उलाहना के लिए..
क्योंकि ऐसी मान्यता है कि
बिना शिकायत और उलाहना के
पत्नियों की कदर नहीं होती...!
कुछ अच्छे पलों का विश्वास लेकर
घर से चली पत्नी
इस तरह अब मनमुटाव और
खटास में बदल देती है दिनचर्या
शुरू होने लगती है                          
आपसी खटपट और बुराई...
इसका निराकरण करते-कराते
और मान-मनौअल में ही
सारा समय निकल जाता है
इनको बुद्धत्व तब प्राप्त होता है
जब वापसी का समय हो जाता है
शायद इन्हीं समस्याओं से
निजात पाने को और
इनकी तिरछी नजर से बचने को
अधीर मना होकर चोरी-चुपके
पत्नी व्रतधर भी रख लेता है
कम से कम एक अदद गर्लफ्रेंड
कुछ ज्यादा हो तो भी
संदेह का विषय नहीं....और....
इन्हीं पर लुटाता है अपना खजाना
असंतुष्टि भरे मन का और
बैंक में छुपाए हुए काले धन का
समाज को इसका भान
तभी हो पाता है....जब...
इन पर एक-आध छापे,
अखबार में छप जाते हैं....
मित्रों आज का दौर तो देखो
बैंक और बीबी दोनों...
अविश्वास के दायरे में है
शायद इसीलिए समाज में भी
गर्लफ्रेंड को मान्यता मिल गई है
मित्रों आश्यर्य भी होता है कि...
देर-सवेर भेद खुल ही जाता है
जो इज़्ज़त और दौलत इनके पास
कथित तौर पर सुरक्षित रखते हैं
दुनिया के सामने आ ही जाता है
फिर भी उनका मन यही मानता है
कि जीवन में पत्नी के अलावा
एक-आध गर्लफ्रेंड जरूर हो जाए
भले ही बाद में भेद खुल जाए....
भले ही बाद में भेद खुल जाए....


रचनाकार...
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारी नगर,जनपद-जौनपुर

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