धर्म को बचाइए बचा हुआ धर्म आपको बचाएगा-- आचार्य डॉ अजय आर्यमानव निर्माण के गुण ही धर्म हैं,ईश्वर की आज्ञा का पालन ही धर्म है-- स्वामी दयानंद

धर्म को बचाइए बचा हुआ धर्म आपको बचाएगा-- आचार्य डॉ अजय आर्य
मानव निर्माण के गुण ही धर्म हैं,
ईश्वर की आज्ञा का पालन ही धर्म है--  स्वामी दयानंद

धर्म परिचर्चा द्वितीय प्रवचन


महरौनी(ललितपुर)-- महर्षि दयानन्द सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्वाधान में धर्म के सही मर्म को युवा को परिचित कराने के उद्देश्य से लगातार ऑनलाइन वेविनार के क्रम में मनु स्मृति में धर्म का स्वरूप विषय पर   तीन दिवसीय धर्म परिचर्चा के द्वितीय दिवस प्रवचन में   सुविख्यात युवा वैदिक विद्वान आचार्य डॉ. अजय आर्य एवं सारस्वत अतिथि अवनी भूषण पुरंग भिलाई एवं अध्यक्षता आर्य समाज महरौनी के प्रधान मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ एवं संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य के संचालन में सम्पन्न हुआ।
 
वैदिक विद्वान  आचार्य डॉ अजय आर्य छत्तीसगढ़  ने कहा -मनुस्मृति कहती है जब हम धर्म की रक्षा करते हैं तो बचा हुआ धर्म हमारी रक्षा करता है। धर्मो रक्षति रक्षित:। जीवन में जो कुछ प्राकृतिक और स्वाभाविक है उसने यह सूत्र गठित होता है। आप प्रकृति को बचाएंगे तो बची हुई प्रकृति आपको बचाएगी। प्रकृति का अधिकार हमारे सर्वनाश का निमंत्रण सिद्ध होता है। गीता में सात्विक गुणों के लक्षण बताए गए हैं। गीता कहती है जो प्रारंभ में विष जहर की तरह लगे वह और परिणाम में अमृत की तरह हो वह सात्विक गुण है। इसे एक उदाहरण से समझिए । योग करना सुबह उठना प्राणायाम करना विश्व की तरह लगता है दुखदाई लगता है किंतु कालांतर में इसका परिणाम अमृत की तरह होता है। लखन लाल जी का निमंत्रण सत्संग में जाना यह प्रारंभ में अरुचिकर होते हैं विष की तरह कड़वे लगने लगते हैं किंतु परिणाम में मीठे अमृत हैं। मनुस्मृति में मानव निर्माण के गुणों को ही धर्म कहकर पुकारा गया है।  मनु ने  धर्म के दश लक्षण बताए  हैं जैसे  धैर्य, क्षमा, इंद्रियों का दमन करना, संयम करना, अस्तेय चोरी न करना, शौच, मन वचन से पवित्र रहना आदि।
अस्तेय का शाब्दिक अर्थ है - चोरी न करना। हिन्दू धर्म तथा जैन धर्म में यह एक गुण माना जाता है। योग के सूत्र में अस्तेय, पाँच यमों में से एक है। अस्तेय का व्यापक अर्थ है - चोरी न करना तथा मन, वचन और कर्म से किसी दूसरे की सम्पत्ति को चुराने की इच्छा न करना।शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान, इन पांचो को योग सूत्र में नियम कहा गया है। शारीरिक शुध्दता अत्यंत आवश्यक है। इसके बाद मनस की शुद्धता, मन को साफ़ शुद्ध रखना। अन्तः शौच, बाह्य शौच - अंदर और बाहर दोनों तरह की शुद्धता को बनाये रखना, शरीर और मन को तनाव और अशुध्दियों से मुक्त कर लेना ही शौच है।  
सारस्वत अतिथि अवनीभूषण  पुरंग भिलाई  ने कहा-दुर्गुण दुर्व्यसन से सद्गुण की ओर जाना ही धर्म है। धर्म जीवन को शुद्ध करता है ।
अध्यक्षता करते हुए मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ  ने कहा - 
वैदिक साहित्य में धर्म वस्तु के स्वाभाविक गुण तथा कर्तव्यों के अर्थ में भी आया हैं। जैसे जलाना और प्रकाश करना अग्नि का धर्म हैं और प्रजा का पालन और रक्षण राजा का धर्म हैं।
स्वामी दयानंद के अनुसार - जो पक्षपात रहित न्याय सत्य का ग्रहण, असत्य का सर्वथा परित्याग रूप आचार है, उसी का नाम धर्म और उससे विपरीत का अधर्म हैं। पक्षपात रहित न्याय आचरण सत्य भाषण आदि युक्त जो ईश्वर आज्ञा वेदों से अविरुद्ध हैं, उसको धर्म मानता हूँ ।

वेविनार में डॉ वेद प्रकाश शर्मा बरेली,चन्द्रकान्ता आर्य चंडीगढ़,सुरेश गौतम अमेरिका,विमल पुरंग,बाबू सिंह  महरौनी, ईश आर्य पतजंलि राज्य प्रभारी हरियाणा, दया आर्या हरियाणा, ईश्वर देवी,मिथलेश गौर प्राचार्य खुर्जा,चन्द्रभान सेन पन्ना,रामकुमार सेन अजान सहित सैकड़ों आर्यजन जुड़ रहें हैं।
संचालन संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवं आभार विमलेश  सिंह शिक्षक ने जताया।

Comments

Popular posts from this blog

मीरा रोड मंडल द्वारा बीजेपी जिलाध्यक्ष किशोर शर्मा का सम्मान

बीजेपी नगरसेवक मनोज रामनारायण दुबे का सराहनीय काम

मीरा रोड में धूमधाम से मनाई गई महावीर जयंती