किसानों की मेहनत और सपनों को ध्वस्त करते आवारा पशुओं के झुंड

किसानों की मेहनत और सपनों को ध्वस्त करते आवारा पशुओं के झुंड
जौनपुर। यह कोई प्रोफाइल फोटो नहीं है।   यह एक आम दृश्य है, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश के कमोवेश सभी जिलों में देखा जा रहा है। चारों तरफ फैली हरी भरी फसल के बीच आवारा पशुओं का झुंड इस तरह फसलों को चट कर रहा है ,मानो उन्हें सरकारी दावत मिली हो। आप कल्पना करें ,जिस किसान के खेत में 15 से 20 की संख्या में आवारा पशु एक साथ 2 घंटे भी रह गए, उस खेत के मालिक पर क्या बीतेगी ? 2022 में किसानों की आय दोगुनी करने की घोषणा करने वाली सरकार के पास कौन सी तिलिस्मी योजना है, समझ से परे है। बड़े-बड़े किसान मनमानी कीमतों पर दलहन और तिलहन की खरीदारी करने को बाध्य हैं। किसान सम्मान निधि का मरहम लगाने वाली योगी सरकार, बेतहाशा संख्या में बढ़ रहे आवारा पशुओं के नियंत्रण को लेकर मौन है। सक्षम किसानों ने अलबत्ता लाखों रुपए खर्च कर अपने खेतों की चारों को घेराबंदी कर दी है, परंतु उस घेराबंदी की मियाद कितनी है? लोहे के तार, लोहे के खंभे, दो-तीन वर्षों में ही गिरने शुरू हो जाएंगे। जिन मुद्रादायिनी फसलों को किसान अपने खेतों में पैदा करता था, आज उनकी खरीददारी में लगा हुआ है। ज्वार, बाजरा, मक्का ,सरसों ,चना अरहर जैसी कम पानी वाली फसलों की जगह अधिक पानी वाली फसलें, धान और गेहूं पैदा किया जा रहा है । इसके चलते पानी का गंभीर संकट दस्तक देने लगा है। बड़ा से बड़ा किसान प्रतिदिन सब्जियां खरीद रहा है। आवारा पशुओं के डर से ना तो वह सब्जियों को पैदा कर पा रहा है और ना ही कोई बटाई पर करने को तैयार है। जो लोग मुंबई जाते हैं ,वह एक बात जरूर गौर किए होंगे कि पूरे मध्यप्रदेश तथा पूरे महाराष्ट्र में कहीं भी आवारा पशु किसानों की फसल को बर्बाद करते हुए दिखाई नहीं देते। बिहार सरकार ने भी इच्छा शक्ति दिखाते हुए बेलगाम आवारा पशुओं को प्रभावी तरीके से नियंत्रित कर लिया। बेरोजगारी की मार झेल रहे पूर्वी उत्तर प्रदेश के नौजवानों के पास खेती के रूप में बचा हुआ अंतिम विकल्प भी हाथ से निकलता दिखाई दे रहा है।

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