रिपोर्ट (73 वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर संविधान के मूल्यों पर ख़तरा और हमारी ज़िम्मेदारी पर परिचर्चा)

रिपोर्ट (73 वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर संविधान के मूल्यों पर ख़तरा और हमारी ज़िम्मेदारी पर परिचर्चा)
दिनाँक 25 जनवरी 2022 को गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या में, पथगामिनी आभासीय पटल पर 'संविधान के मूल्यों पर परिचर्चा का आयोजन किया गया । जिसका कुशलतापूर्वक एवं उत्कृष्टता से संचालन; पटल की संस्थापिका 'श्रीमती मंजुला श्रीवास्तवा' जी द्वारा किया गया ।
कार्यक्रम की शुरुआत में संचालिका श्रीमती श्रीवास्तवा' ने सभी अतिथियों का शिष्टाचारिक अभिवादन करने के साथ उनका परिचय देते हुए 
सर्वप्रथम एडवोकेट 'तनवीर अहमद सिद्दीकी' वाराणसी  को अपने विचार साझा करने का अवसर मिला उन्होंने अपनी बात प्रखरता से रखते हुए संविधान के मूल अधिकारों पर प्रकाश डाला। उन्होंने जोर देकर कहा कि आर्टिकल-15 और आर्टिकल-21 के अधिकारों सहित सभी मूल अधिकार संविधान का अपरिवर्तित तत्व हैं। एवं यह अधिकार ही सभी देशवासियों का सम्मान सुनिश्चित करते हैं। निर्वाचित सरकारों की ये जिम्मेदारी है कि वह इन अधिकारों को संरक्षण व मजबूती प्रदान करने की लगातार कोशिश करती रहें ‌।
इसके उपरांत लाइब्रेरी साइंस की एसोसिएट प्रोफेसर 'गीता आर शर्मा' जी ने अपनी बात रखी। उन्होंने जिस सादगी एवं अत्यधिक प्रभावशाली लहजे में अपने विचारों को दर्शक श्रोताओं के मन तक ट्रांसमिट किया , उसकी जितनी तारीफ की जाए वो कम ही है। कांस्टीट्यूशन-लिट्रेसी या यूंँ कहें कि संविधान-साक्षरता की कितनी ज़रुरत व इसका कितना महत्व है , इस बात को बेहद खूबसूरती से आपके द्वारा बताया गया । श्रीमती गीता ने कहा कि हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम भावी पीढ़ी को गीता, रामायन,कुरान,बाइबिल एवं गुरुग्रंथ साहिब आदि की तरह ही संविधान की भी प्राथमिक शिक्षा भी उन्हें देने पर जोर दिया।
तत्पश्चात संचालिका के एक बेहद गंभीर प्रश्न (संविधान एवं न्याय ज्ञाता अपने स्वार्थों के अनुरूप उनके मायने ही बदलने की कोशिश में लगे रहते हैं)  के जवाब में राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर 'डॉ. रवि प्रकाश गुप्ता' ने  बड़ी ही सहजता से स्वयं को राजनीतिक विज्ञान का एक विद्यार्थी बताया और लोकतंत्र एवं संविधान की प्रस्तावना पर सारगर्भित चर्चा से पटल के कार्यक्रम की सार्थकता और बढ़ा दी । बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु उन्होंने उठाया और कहा कि " लोक के द्वारा तंत्र का निर्माण लोकतंत्र है,पर हमें समय-समय पर ये सुनिश्चित करना चाहिए कि कहीं लोक के नाम पर कोई और ना लोकतंत्र का‌ निर्माण करने लगे । लोक ही तंत्र का निर्माता रहे कोई मोहरा नहीं।
इसी क्रम में मानवाधिकार जन निगरानी समिति की सदस्य 'श्रुति नागवंशी' जी ने पारिवारिक लोकतंत्र की महत्ता को बतलाते हुए इस बात पर जोर दिया कि लोगों से परिवार, परिवार से समाज और समाज से देश व दुनिया एवं इसके विचारों का सृजन होता है। अगर परिवार में ही लोकतंत्र नहीं होगा तो हम कैसे देश में या समाज  में लोकतंत्र की बात कर सकते हैं। परिवार और समाज में पितृसत्ता एवं सहयोग के स्थान पर मुखिया का शासनवादी रवैया कैसे वंचित समुदाय, महिलाओं एवं दलित बच्चों को लोकतंत्र से दूर कर रहा है । वाकई नागवंशी जी के विचार क्रांतिकारी और प्रशंसनीय थे।
इसके बाद राजनीतिक विचारक 'लेनिन रघुवंशी' जी ने कहा कि 'लोकतंत्र ज्ञान नहीं बल्कि एक कला है, और कला अभ्यास से निखरती है।' जैसी अद्भुत पंक्ति से अपना विचार रखा । लोकतंत्र क्या है उसको समझने के लिए कैसे हमें इतिहास के पन्नों से मोती चुन लेने की ज़रुरत है । हमारी गौरवशाली परंपराओं में कैसे रुढ़िवाद और पाखंड हावी हुआ। और उसकी वजह से कैसे हमें लोकतंत्र को सही तरीके से समझना चाहिए। अद्भुत विचार रखे।
" इन सभी विचारों के सृजन में पथगामिनी आभासीय पटल की संचालिका एवं संस्थापिका 'श्रीमती मंजुला श्रीवास्तवा' जी का  अहम योगदान रहा । उनके द्वारा जिज्ञासु ज्वलंत व प्रासंगिक प्रश्नों के फलस्वरूप  सारगर्भित परिचर्चा सफ़लतापूर्वक संपन्न हो सकी।
द्वारा- 'देवकृष्ण गुप्ता'
पथगामिनी एडिटर

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