*साईकिल और बीता बचपन*बचपन वाले दिन....कितने आनंददायक थे.....!जब कभी दादी और कभी माँ के आँचल में घुसकर....
*साईकिल और बीता बचपन*
बचपन वाले दिन....
कितने आनंददायक थे.....!
जब कभी दादी और कभी माँ के
आँचल में घुसकर....
हम लोगों की नजरों से
छिप जाया करते थे,
कभी पिता के कंधे पर बैठकर मुस्कुराते हुए हम उड़ा करते थे
समय के साथ.....
हमने घुटुरूअन चलना सीखा
फिर माँ-दादी ने उंगली पकड़ाकर
चलना सिखा दिया,
और तेज होने के लिए
मेले से काठ की तिपहिया गाड़ी
दादा जी ने दिला दी....
धीरे-धीरे हम दौड़ने भी लगे
भ्रम में ही सही पर,
पिताजी को पछाड़ने भी लगे
फिर कुछ दिनों बाद...!
हमने खुद ही तेजी पकड़ ली
और एक डंडी के सहारे
साईकिल की टायर दौड़ाने लगे
देखते ही देखते...
हम ट्रैक्टर की ट्राली पकड़ कर झूलते हुए आगे जाने लगे
उत्सुकतावश...
गाँव में आए स्कूटर और मोटरसाइकिल के पीछे-पीछे
एकाध किलोमीटर भागने भी लगे इसी बीच चोरी-चोरी,
दोस्तों ने खेल-खेल ही में
साइकिल चलाना सिखा दिया
अब स्कूल जाने से लेकर
घरेलू कामकाज....
खेती-बारी के छोटे-बड़े काम
हम शौकिया करने लगे.....
साईकिल चलाने का शौक तो
पूरा होता रहा पर....!
यह एहसास बाद में हुआ
कि इस साईकिल ने.......
कई दुनियावी बोझ
समय से पहले ही
मत्थे पर डाल दिया .....
सच कहूँ तो इस साईकिल ने
हम गाँव वालों का
बचपन छीन कर..
बचपन में ही......!
कुछ ज्यादा बड़ा
और जिम्मेदार बना दिया...
कुछ ज्यादा बड़ा
और जिम्मेदार बना दिया...
जितेन्द्र कुमार दुबे
क्षेत्राधिकारी नगर
जनपद.. जौनपुर
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