*गाँव का पंचनामा*
*गाँव का पंचनामा*
"शहरनामा" लिखने को...
विचारों की थाती लिए
मैं गाँव आया...
धूल भरे रास्ते में देखे...
पैरों से कंकड़ मारते लड़के...
लाठी और लोटा लिए,
गाय चराते लोग.............
अतिशय आनन्द,अतिशय आनन्द
पटरियों के....
पीपल,बरगद,महुआ और नींम
सभी छांव देने को आतुर...
गुल्ली-डंडा, कबड्डी, पिट्टू
खेलते गांव के बच्चे...
अपने में मगन,अपने में मगन..
नदी के रास्ते के.....
गेंदा,गुड़हल,अड़हुल के फूल,
बबूल,पलाश और महुआ....
सब खिलखिलाते मस्त...मस्त..!
नदी के किनारे कदंब का पेड़,
तुलसी का बिरवा.....
उसी के पास बांस की मचान से
मैंने देखा नदी में....
नाव,मछली,कछुआ और मगरमच्छ....
जाल डालते मछुआरे....
एक दूसरे के दुश्मन और दोस्त...!
देखा वही नदी में नहाते हुए लोग
नंगेबदन,लंगोटधारी सन्यासी,
और तिलकधारी ब्राह्मण...
पास में पिकनिक मनाते लोग
वहीं कहीं जलती चिताएं...
जीवन का हर एक सर्ग....!
दृष्टिगोचर प्रत्यक्ष था.....
हर ओर से आ रही थी...
अपनी माटी की सोंधी खुशबू....!
इनमें ही मन रमता गया
सुबह से हो गई शाम...
सूर्य का जब हुआ अवसान
दिया मैंने पुराने विचारों को विराम
मन में उठ रहे थे प्रश्न तमाम...
भाव आया नया मन में महान
गाँव के आगे कैसा "शहरनामा"..?
किस बात का "शहरनामा"...?
मैं तो अब गाँव जिऊंगा और,
गाँव लिखूँगा..............
लिखूँगा गाँव का पंचनामा....
गाँव का पंचनामा.....
जितेंद्र दुबे
पुलिस उपाधीक्षक, जौनपुर
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