किताबें

किताबें
पहचान अपनी खोने लगी हैं किताबें
अब दूर,बहुत दूर,होने लगी है किताबें

वो किताबें
जिन्हें पाकर  हम खुश हो जाते थे।
वो किताबें
जिनके लिए हम दोस्त बनाते थे।
वो किताबें 
जिनके लिए छुट्टियों से प्यार था। 
वो किताबें 
जिनसे हमारा बचपन गुलजार था।
वो किताबें
जिन में किस्से कहानियां पढ़ते थे।
और मन ही मन उनके चरित्र गढ़ते थे ।
न जाने अब क्यूं खोने लगी हैं किताबें
अब दूर, बहुत दूर, होने लगी हैं किताबें 

हर एक विषय की अच्छी किताबें 
जीवन को जीने की सच्ची किताबें वो किताबें
जो ज्ञान का भंडार थीं।
वो किताबें 
जो जीवन का विस्तार थीं।
वो किताबें
जिन्हें हम आधे मूल्य में लाते थे।
वो किताबें 
जिन पर हम जिल्द चढ़ाते थे।
वो किताबें 
जिन से स्कूल का बस्ता लगाते थे।
वो किताबें
जिन्हें हम सम्पूर्ण पढ़ जाते थे ।
वो किताबें 
जिनमें सूखे गुलाब छिपाते थे ।
वो किताबें 
जिनसे हम गौरवान्वित हो जाते थे।
हाल पर अपने अब रोने लगी हैं किताबें
पहचान अपनी खोने लगी हैं किताबें
न जाने अब क्यूं खोने लगी हैं किताबें
अब दूर बहुत दूर होने लगी हैं किताबें

ये माना आज कंप्यूटर और मोबाइल का दौर है ।
मगर किताबों से पढ़ने की बात ही कुछ और है।
किताबें विशुद्ध वर्तनी संभालती हैं।
मोबाइल स्क्रीन कुछ भी लिख  डालती हैं।
किताबें सहिष्णु हैं मोबाइल को नहीं कोसती हैं।
और कभी भी अश्लील विज्ञापन नहीं परोसती हैं।
मोबाइल में विषय से भटकाव संभव है।
इसलिए किताबों के बिना पूर्ण ज्ञान असंभव है।
यह सही है,
मोबाइल के पर्दे असीमित ज्ञान की परतें खोलते हैं,
यह सही है,
मोबाइल पर चित्र चलते हैं शब्द बोलते हैं।
परंतु, देखने और पढ़ने वाले को निष्क्रिय बनाते हैं।
उसकी बौद्धिक क्षमता को निष्प्रभावी कर जाते हैं।
किताबे मौन होकर भी ज्ञान प्रसारित करती हैं।
किताबें मस्तिष्क की शिराओं को सक्रिय करती हैं।
मगर अब मायूस और उदास होने लगी है किताबें,
 
हमसे दूर बहुत दूर होने लगी हैं किताबें ...।

- भीम भारत भूषण
मोदी नगर, उत्तर प्रदेश।

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