देता प्रकाश दीप भी जल कर के रात भर।।*---------- मुक्तककार गिरीश कुमार गिरीश*
देता प्रकाश दीप भी जल कर के रात भर।। *---------- मुक्तककार गिरीश कुमार गिरीश* विश्राम करता सूरज ढ़ल कर के रात भर।। चन्दा के साथ चांदनी चल कर के रात भर।। कहता नहीं है दर्द किसी से कभी गिरीश- देता प्रकाश दीप भी जल कर के रात भर।। अल्पज्ञ हैं नहीं है ज्ञान विधि विधान का।। अपमान कर रहे हैं मूर्ख संविधान का।। वीरों की ये धरती है साहस है शौर्य भी- गुणगान विश्व करता है भारत महान का।। पग में बंधा बजता रहूँ छागल नहीं हूँ मैं।। तन मे विंधे हैं तीर यूँ घायल नहीं हूँ मैं।। करता हूँ अपने मन का कहता नहीं कभी- पागल करार कर दिये पागल नहीं हूँ मैं।। मुश्किल है लगाना कठिन अंदाज आज कल।। कब और कहाँ किस पे गिरे गाज़ आज कल।। बदला हुआ है तेवर बच कर के जरा रहना- सत्ता का बहुत गर्म है मिज़ाज आज कल।। कुछ लोग हैं जो आते नहीं बाज आज कल।। नीलाम कर दिये हैं शर्म लाज आज कल।। गुमराह करने निकले हैं जनता को देश की- बदला हुआ है जीने का अंदाज़ आज कल।। रीति बदली रिवाज बदला है।। है नया युग समाज बदला है।। उफनी नदियाँ हैं चीखते पर्वत- बादलों का...