*काव्य के रंग–साहित्यकारों के संग*” : ऑनलाइन काव्य गोष्ठी ने रचा साहित्यिक सौंदर्य का अनुपम उत्सव
*काव्य के रंग–साहित्यकारों के संग*” : ऑनलाइन काव्य गोष्ठी ने रचा साहित्यिक सौंदर्य का अनुपम उत्सव
बाबू सोमनाथ सिंह मेमोरियल ट्रस्ट की कोलकाता (पश्चिम बंगाल) इकाई द्वारा मंगलवार, 16 दिसंबर को आयोजित ऑनलाइन साहित्यिक कार्यक्रम “काव्य के रंग–साहित्यकारों के संग” अत्यंत गरिमामय, भावपूर्ण और सफल रहा। साहित्य, शिक्षा एवं संस्कृति को समर्पित इस न्यास की कोलकाता (पश्चिम बंगाल) इकाई ने आयोजित साप्ताहिक काव्य-गोष्ठी में जुड़े रचनाकारों की सृजनात्मक सहभागिता को हृदय तल से सराहा ।
कार्यक्रम का संयोजन संस्था के संस्थापक शिव कुमार सिंह एवं संस्था की सचिव सत्यभामा सिंह जिया के मार्गदर्शन में संपन्न हुआ। कार्यक्रम का कुशल संचालन एवं नेतृत्व पश्चिम बंगाल इकाई की प्रदेश अध्यक्ष, सुप्रसिद्ध कवयित्री डॉ. उर्वशी श्रीवास्तव द्वारा किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ कोलकाता के प्रसिद्ध वरिष्ठ ग़ज़ल गायक एवं मुख्य अतिथि कृष्ण कुमार दुबे द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। इसके पश्चात डॉ. उर्वशी श्रीवास्तव की स्वरचित सरस्वती वंदना ने वातावरण को आध्यात्मिक और साहित्यिक ऊर्जा से आलोकित कर दिया।
कार्यक्रम का मंच रंग-बिरंगे साहित्यिक गुलशन की भाँति सजा हुआ था, जहाँ गीत, ग़ज़ल, भजन और छंद की विविध विधाओं ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। रचनाकारों ने अपनी उत्कृष्ट प्रस्तुतियों से यह सिद्ध कर दिया कि संवेदनशील लेखनी आज भी पत्थर को मोम में ढालने की सामर्थ्य रखती है।
मुख्य अतिथि कृष्ण कुमार दुबे की ग़ज़लों का ऐसा जादू चला कि श्रोताओं की हर पंक्ति पर “वाह–वाह” की गूंज सुनाई दी। विशिष्ट अतिथि जानवी अग्रवाल *जूली* द्वारा अपनी माँ को समर्पित कविता ने उपस्थित जनों के हृदय को गहराई से स्पर्श किया।
कोलकाता के जाने-माने गीतकार एवं ग़ज़लकार कमल पुरोहित अपरिचित ने अपनी सरल, प्रभावी ग़ज़लों से श्रोताओं को ऐसा बाँधा कि लोग देर तक उन्हें गुनगुनाते रहे। कोलकाता की उभरती , ओज की कवयित्री ने मिथिला की बेटी पर आधारित अपनी रचना से ऊर्जा और उत्साह का संचार किया। वहीं, छंदों की सशक्त प्रस्तोत श्वेता गुप्ता श्वेतांबरी ने राधा–कृष्ण की लीलाओं का छंदात्मक शैली में ऐसा भावपूर्ण वर्णन प्रस्तुत कर श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया।
विशेष आमंत्रित साहित्यकार दिनेश चंद्र त्रिपाठी ने अपनी विशिष्ट भाषा-शैली से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। साथ ही चित्रा त्रिपाठी द्वारा गीता के श्लोकों का भावपूर्ण पाठ एवं व्याख्या इतनी मार्मिक रही कि श्रोताओं की आँखें नम हो गईं।
संचालिका डॉ. उर्वशी श्रीवास्तव ने उत्तर प्रदेश की लोक-स्मृतियों से जुड़ी, दिसंबर में खाए जाने वाले चोखा–बाटी पर आधारित, अपने माता–पिता को समर्पित कविता “चोखा–बाटी मेरे आँगन की” का भावपूर्ण पाठ कर हर हृदय को छू लिया।
कार्यक्रम की आत्मा रहीं संस्था की सचिव सत्यभामा सिंह जिया जी—जब उन्होंने अपने गीतों और ग़ज़लों का पिटारा खोला, तो मंच पर बार-बार “वाह–वाह” की गूंज सुनाई दी और सभी को इस संस्था से जुड़ने का गर्व महसूस हुआ। अध्यक्षीय उद्बोधन एवं धन्यवाद ज्ञापन में उन्होंने यह संदेश दिया कि ऑनलाइन मंचों के माध्यम से भी साहित्य की गंगा का सतत और व्यापक प्रवाह संभव है।
समग्रतः, यह ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी साहित्यिक सौहार्द, सृजनात्मक ऊँचाई और सांस्कृतिक समन्वय का एक अविस्मरणीय उत्सव सिद्ध हुई, जिसमें सभी साहित्यकारों ने श्रोताओं को अपनी लेखनी का कायल बना दिया।
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