केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में ग्रंथालय सप्ताह संपन्न

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में ग्रंथालय सप्ताह संपन्न
नासिक : सैयद पिंपरी स्थित केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नासिक परिसर में ग्रंथालय स्प्ताह दिवस (14से20नवम्बर ,2025) समापन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रुप में अध्यक्ष अखिल भारतीय साहित्य परिषद ( नासिक) वकील डॉ चंद्रिका प्रसाद मिश्र ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा के जड़ में पुस्तकालय भी एक साधन है। किंतु जो वर्तमान में विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर रहे है वह भारतीय ज्ञान परम्परा की दृष्टि से नही बल्कि गुगल, यू ट्यूब और वाट्सअप का जरिए अर्ध ज्ञान की प्राप्ति कर रोजगार जल्द से जल्द प्राप्त  करना चाहते है जो तत्काल समस्या का समाधान तो हो सकता है लेकिन वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकता है। दूसरे की विद्या और धन कभी अपने कार्य नहीं आ सकता है उसके लिए गुरु का ज्ञान और स्वाध्याय काम आएगा और स्वाध्याय का सबसे उचित साधन है ग्रन्थालय है। विद्या ज्ञान का प्रथम सीढ़ी है जो शिक्षा को ज्ञान तक पहुंचाने का माध्यम है। जो भारतीय संस्कृति में आजीवन चलती रहती है। इस विषय में चाणक्य ने कहा है कि ये येशाम न विद्या तपो न दानम....... इसमें विद्या और ज्ञान  दो शब्दों का प्रयोग किया गया है। इस प्रकार विद्या, शिक्षा और ज्ञान तीन शब्द प्रयोग होते है। विद्या ज्ञान प्राप्त करने की कुशलता है। शिक्षा ज्ञान का व्यवस्था तंत्र है। ज्ञान यह पवित्रम सत्ता है और इसे ब्रम्हा भी कहा गया है। ज्ञान और ज्ञान उपासना को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित किया जाता है, इसको ही ज्ञान परम्परा कहते है। अध्ययन के पांच पद है, जिसे पंचपदी कहते है :1) अधीति ज्ञानेंद्रिय से विषय को ग्रहण करना अधीति है।,2)बोध मन और बुद्धि के द्वारा अधीति विषय के ग्रहण करना बोध है।3) अभ्यास जिसका बोध हुआ है, उसे पुनः पुनः करना अभ्यास है।,4) प्रयोग अभ्यास से बोध परिपक्व होता है और उसके अनुसार आचरण करना प्रयोग है। तथा 5) प्रसार स्वाध्याय और प्रवचन प्रसार के दो अंग है। भारतीय साहित्य में तो चंदा को मामा, बिल्ली को मौसी, हाथी को दादा, चिड़िया को रानी कहकर बनाने का अद्भुत कौशल है। यह पर्यावरण के प्रति परिचायक है। यह सभी ज्ञान का स्रोत गुरु और पुस्तकालय की शरण में जानें पर ही प्राप्त होगा। मन, बुद्धि, ज्ञान का व्यक्तित्व, चिन्तन और संस्कृति का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित करने की परम्परा केवल भारत में है विश्व के अन्य देशों में नहि मिलेगा।
इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए परिसर के निदेशक प्रो नीलाभ तिवारी ने कहा कि जीवन का विचार चिन्तन उस पुस्तक में दिया होता है, पुस्तक को पढ़ने आत्मसात् करने से कौशल विकास होता है। पुस्तक वह है जो गलत सही का निर्णय करता है। शिक्षा विद्या का सम्बंध ज्ञान से है और ज्ञान से ही ब्रम्ह ज्ञान की प्राप्ति होती है इसलिए मोक्ष ज्ञान की प्राप्ति का साधन विद्या है।  जिसे तप के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है वह तप करने का स्थान ग्रंथलाय है। ग्रन्थालय में ज्ञानार्जन का साधन पुस्तक और गुरु है जो ब्राह्य करण और अंतः करण का मार्ग दिखाते है। जिसके पांच कर्मनेंद्रिया पांच ज्ञानेंद्रिया तथा  चित, मन ,बुद्धि और अहंकार चार करण है। यह सभी 14 ज्ञान मार्ग तक पहुंचने के साधन है। जिसे मन के विकल्प और आत्मा के संकल्प से प्राप्त किया जा सकता है। इस अवसर पर ग्रंथलाय सप्ताह दिवस का प्रतिवेदन  की जानकारी देते हुए ग्रंथलाय प्रभारी डॉ रंजय कुमार सिंह कहा कि विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो श्रीनिवास बरखेड़ी का विचार है कि विद्यालय एक विद्या का मंदिर है, जहां पर ग्रन्थालय का एक गर्भगृह होता है। उस गर्भगृह में सरस्वती का निवास स्थान होता है। जिसे सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त करना है उस  विधार्थी को ग्रन्थालय में जाकर तप करना चाहिए। केंद्रीय ग्रन्थालय को तकनीकी दृष्टि से उच्च स्तर प्रदान करने के लिए कुलगुरु प्रो बरखेड़ी के मार्गदर्शन में विश्वविद्यालय के ग्रंथालयाध्यक्ष डॉ पी एम गुप्ता का प्रयास जारी है। इस अवसर पर ग्रन्थालय संयोजक ने बताया कि ग्रन्थालय सप्ताह दिवस में विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। जिसमें निबंध प्रतियोगिता में रीतिका जमधड़े प्रथम, कार्तिकि सोनावडे द्वितीय तथा दर्शन पट्टांगडे तृतीय स्थान प्राप्त किया । भाषण प्रतियोगिता में श्रेया कराड प्रथम, अनिकेत पांडेय द्वितीय तथा देवेश आदिक द्वितीय तृतीय स्थान प्राप्त किया। लिखित क्विज प्रतियोगिता मेंशशिकांत प्रथम, अखिलेश वेसेडिया एवम देवेश आदिक द्वितीय तथा आर्या पुजारी तृतीय स्थान प्राप्त की।इस अवसर पर स्वागत भाषण शिक्षा शास्त्र विभाग के वरिष्ठ सहायक अचार्य डॉ दत्ताराम पाठक ने धन्यवाद ज्ञापन भौतिक विज्ञान की शिक्षिका सरिता कुमारी ने जबकि मंच संचालन ग्रन्थालय सहायक शुभम शर्मा ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में ग्रन्थालय आयोजन समिति  के सदस्य  ऋषभ तिवारी , समृद्धि फड्डनीश, सत्यम द्विवेदी का विशेष योगदान रहा। कार्यक्रम समापन राष्ट्गान से हुआ जिसमे सभी शिक्षक कर्मचारी और छात्र उपस्थित थे।

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