*महागठबंधन की हार यह बता रही है कि राष्ट्रवाद सर्वोपरि है*

*महागठबंधन की हार यह बता रही है कि राष्ट्रवाद सर्वोपरि है*
        एक बार फिर राष्ट्रवाद की जीत हुई है।बिहार का चुनाव परिणाम इस बात खुला शंखनाद है। बिहार की जनता ने जाति पाति और धर्म को दरकिनार करते हुए राष्ट्रवाद और विकास पर वोट किया है।और देशवासियों को संदेश भी दिया है।कि जाति पाति की वैमनस्यता से न देश का न प्रांत का विकास निहित है,बल्कि अपना भी विकास जाति पाति के चक्कर में प्रभावित होता है।यह चुनाव परिणाम यह कह रहा है कि सेना के शौर्य पर सवाल उठाने।भारत की गरिमा को गिराने से देश की संवैधानिक संस्थानों बेईमान और चोर कहने से वोट नहीं मिलता।काम करने से वोट मिलता है। बिहार के प्रबुद्ध वोटरों ने अपनी सूझ बूझ का परिचय देते हुए राष्ट्रवाद और विकास को वोट किया है। बिहार अपराधमुक्त हो भ्रष्टाचार मुक्त हो इसलिए वोट किया।और नीतीश कुमार पर एकबार फिर से भरोसा जताया है।
        सोचना तो उन पार्टियों को है।विशेष रूप से आरजेडी और सपा को।कि अब लोग जाति पाति से ऊपर उठकर देश व प्रांत की उन्नति के वोट कर रहे हैं।महागठबंधन चुनाव में उतरा जरूर।मगर न नीति सही थी न नीयति।महागठबंधन चुनाव में उतरा तो उसके पास ढंग के मुद्दे ही नहीं थे।कोई वोट चोरी का मुद्दा उठाया है तो कोई नीतीश कुमार जी के स्वास्थ्य का मुद्दा। जनहित के मुद्दे उठाने में क्यों हिचकिचाते रहे समझ में ही नहीं आया।एक महागठबंधन का नेता भारत जोड़ने की बात करता है तो दूसरा देश के प्रधानमंत्री गृहमंत्री को बाहरी कह रहा है।एक तरफ वोट चोरी का आरोप लगा रहा है।तो वहीं एस आई आर का विरोध।जनता समझ ही नहीं पाई कि ए किस तरह की वोट चोरी की बात कर रहे हैं।
       मेरी समझ से तो इस चुनाव परिणाम से तेजस्वी बाबू को अधिक सोचना होगा।कि किससे गठबंधन करना चाहिए किससे नहीं।तेजस्वी बाबू उसी से गठबंधन किये उसी को चुनाव प्रचार में लगाये जो बिहारियों को समय समय पर अपमानित किए।गठबंधन न टूटे इसलिए बिहारियों के अपमान पर भी ताली बजाते रहे।तेजस्वी भले भूल गये।मगर स्वाभिमानी बिहारी उस बात को याद रखा।और उस अपमान का बदला चुनाव परिणाम से लिया।जिस तरह परिणाम आया वह इसी ओर विशेष रूप से इशारा कर रहा है।तेजस्वी को बिहारियों के मान सम्मान के लिए सोचना चाहिए था।मगर तेजस्वी गठबंधन धर्म निभाते रहे गये।और बिहारी होने का गौरव भूल गये।जिसका नतीजा यह है कि आज वो अपनी ही सिट बचाने के लिए छटपटा रहे हैं।इस लिए मेरा मानना है कि कभी कभी जो कड़वा घूंट पी लेता है वही भविष्य बनाता है।जब बिहारी दूसरे प्रांतों में अपमानित किए जा रहे थे तब तेजस्वी सहित उनके तमाम साथी ताली बजा रहे थे।तेजस्वी बाबू ए भूल गये कि एक दिन उन्हीं बिहारियों से वोट भी लेनी है।नहीं सच में तो झूठे ही सही। बिहारियों के अपमान पर यदि बोले होते तो शायद आज ये दिन न देखने पड़ते।
         एक बात और जब भी देश के ऊपर कोई आपत्ति बिपति आई,तो महागठबंधन के नेता देशद्रोहियों के साथ खड़े नजर आये।उनके बयानों से जनता में यह संदेश गया कि इन लोगों को देश की चिंता कम और देशद्रोहियों की अधिक है। आपरेशन सिंदूर पर महागठबंधन भारत के साथ कम और पाकिस्तान के साथ अधिक खड़ा दिखा।इस लिए आज जनता ने इन्हें इनकी औकात बता दी।बता दी जो देश का नहीं वो हमारा नहीं।जो राम का नहीं वो हमारे काम का नहीं। महागठबंधन वाले यह भूल रहे हैं कि जब जनता में राष्ट्रीय भावना हिलोरें मारने लगती हैं।तब जाति पाति सब नगण्य हो जाती है।
     वैसे महागठबंधन की हार के कई कारण हैं।एक तो गठबंधन की गांठें आखिर खुली ही रहीं। सबसे प्रमुख कारण जो है वो लफ्फेबाजी,राम विरोध,सनातन विरोध,अपने ही देवी देवताओं को गाली देना,अपने रीति रिवाजों पर्वों का बहिष्कार कर दकियानूसी कहना,आदि आदि।दूसरा मुद्दाविहीनता।मुद्दे थे।ऐसा भी नहीं था कि मुद्दों का अकाल था।मुद्दे बहुत से अनसुलझे अब भी हैं।जैसे मंहगाई बेरोजगारी विकास कार्य।मगर महागठबंधन वाले ऊल जलूल प्रचार कर रहे थे।जनहित के मुद्दे से भटके हुए थे। संवैधानिक संस्थाओं को सरकार की कठपुतली बताने में लगे थे।सेना को कमजोर बता रहे थे।नीतीश कुमार को हटाना है यह कह रहे थे।हटाने के बाद क्या करना है।यह समझा ही नहीं पाये।हार एक कारण और है वो है भ्रष्टाचार। महागठबंधन के तमाम ऊपरी पंक्ति के नेता जमानत पर हैं।सभी पर अरबों खरबों के गमन का केश चल रहा है।यह भी महागठबंधन की हार कारण है। क्योंकि भ्रष्टाचार पर ए कुछ कह ही नहीं पाये।यदा कदा कहे भी तो जनता इनकी सुनी ही नहीं।सुनी इसलिए नहीं कि खुद तो फंसे हो।अंकुश किस पर लगाओगे।पहले खुद तो बाहर आओ।कुल मिलाकर महागठबंधन की सारी नौटंकी खारिज।और जनता ने जिसे काबिल समझा उसे माथे पर बैठा लिया।यह राजग की नहीं बिहार की जनता की भी जीत है।
पं.जमदग्निपुरी

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