*अधिप्रचार*
*अधिप्रचार*
हर देश में दो तरह की मनसिकता काम करती है।एक देश के पक्ष में।एक देश के विरोध में।एक सरकार के पक्ष में,एक सरकार के विपक्ष में।देश के पक्ष वाले देशभक्त कहलाते हैं।देश का विरोध करने वाले देशद्रोही। सरकार का पक्ष लेने वाले सरकार के समर्थक होते हैं। सरकार का हर कार्य उनको अच्छा लगता है।भले ही वह देशहित जनहित में न हो।फिर भी समर्थकों का समर्थन मिलता रहता है। सरकार का विरोध करने वाले क्रांतिकारी कहे जाते हैं। जिन्हें सरकार में सिर्फ और सिर्फ दोष ही दिखता है।वे सरकार के द्वारा किए गए जनहित के काम भी सरकार का छलावा बता कर जनता को भ्रमित करते रहते हैं।वो दिन रात अधिप्रचार (प्रोपेगंडा)फैलाते रहते हैं।चाहे सफल हों चाहे असफल। फिर भी शिद्दत से अधिप्रचार में लगे रहते हैं।
आजकल देश में अधिप्रचार का जोर बहुत तेजी से चल रहा है।आज का विपक्ष अधिप्रचार के बूते सोच रहा है सत्ता प्राप्त कर लेगा। इसलिए जब देखो एक प्रोपेगंडा खड़ा करके उसपे संसद तक नहीं चलने देता।जिससे देश का अरबों रुपए सिर्फ पक्ष और विपक्ष की तूं तूं मैं मैं में स्वाहा हो जाता है। जनहित व देशहित की बात हो ही नहीं पाती। इसमें दोनों बराबर के जिम्मेदार हैं।यदि विपक्ष चलने नहीं दे रहा तो,पक्ष ही कहाॅं इस बात को लेकर गंभीर है।वह भी तो सवालों से बचने के लिए विपक्ष को मौका देता है कि विपक्ष सदन को वाधित करे। विपक्ष भी जनहित के मुद्दे कम देशविरोधी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए सदन वाधित करता है।जिससे सरकार को सेफ जोन मिल जाता है।२०१४ से लेकर विपक्ष आज तक सदन में कोई ऐसा मुद्दा नहीं उठाया जिससे जनता या देश का भला होता हो।जब भी उठाया तो अपने हित का उठाया।कभी कभी तो ऐसे मुद्दे सदन में ले आये, जिसमें देशविरोध की बू आ रही थी।जैसे राफेल डील,अडानी अम्बानी, सर्जिकल स्ट्राइक, ईवीएम,आदि।इन सभी मुद्दों पर देश का अरबों खरबों रुपए बरवाद करवा दिए।नतीजा शून्य।हर मुद्दे पर मुॅंह के बल धाराशाई हो गये। उपरोक्त मुद्दों को लेकर विपक्षी २०१४ से लेकर अबतक संसद और सड़क दोनों स्थल पर अधिप्रचार करते रहे।मगर इनका अधिप्रचार हर पटल पर फ्लाप शो साबित हुआ।
अब सबकुछ छोड़कर चुनाव आयोग के पीछे पड़े हैं। क्योंकि ईडी सीबीआई आईबी आदि संस्थानों को बदनाम कर करके थक गये। इसलिए अब उन सबको छोड़कर चुनाव आयोग के बारे में अधिप्रचार करना शुरू कर दिये हैं।पूरा इंडी गठबंधन चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली से बहुत दुखी हैं। बिहार में चुनाव होने वाला है। सरकार चाहती है कि चुनाव साफ सुथरा व पारदर्शी तरीके से हो। इसलिए वोटर पुनरीक्षण करवा रही है।करवाना भी चाहिए। क्योंकि कितने मृत हैं कई वर्षों से।और उनका वोट चल रहा है।उसे हटना चाहिए। इसमें गलत क्या है।कई लोग दो से तीन जगह के वोटर हैं।वह भी हटना चाहिए। इसमें गलत क्या है।कई ऐसे हैं जो भारत के नागरिक नहीं हैं फिर भी वोटर हैं।ऐसे लोग यदि हटाये जा रहे हैं तो गतल क्या है।उल्टे यह तो देशहित की बात है।इससे देश की जनसंख्या का सही सही पता चलेगा।जब जनसंख्या का सही पता चलेगा तो,उसकी व्यवस्था भी करने में सहूलियत होगी। अवैध लोग चिन्हित हो जायेंगे। इसमें विपक्ष को व देश को किस तरह का नुकसान होगा।क्या वोटर लिस्ट से जितने वोट कट रहे हैं।सब विपक्षियों के ही हैं।जो इस तरह से अधिप्रचार करने में दिन रात एक किए हुए हैं।संसद और सड़क तक हंगामा बरपा देश की ऐसी-तैसी कर रहे हैं।यदि चुनाव आयोग गड़बड़ी कर रहा है तो सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चैलेंज करें।सबूत पेश करें।ऐसा नहीं करेंगे। क्योंकि विपक्षियों का जितना अधिप्रचार अदालत में गया।उसकी हवा निकल गई।इस भय से वो संसद में केवल हंगामा कर रहे हैं।एल ओ पी महोदय महाराष्ट्र में फर्जी वोट बढ़ाई गई ऐसा आरोप लेकर अदालत में गये वहां से बेइज्जत होकर आए।फिर वही अधिप्रचार में लगे हैं।और टीवी पर डेमो दिखा रहे हैं।जहां दिखाना था वहाॅं से भाग लिए। यही एल ओ पी महोदय बिहार में वोटर पुनरीक्षण का विरोध कर रहे हैं। क्यों भाई।क्या तकलीफ है।आपका ही तो काम चुनाव आयोग कर रहा है। फिर क्यों छटपटा रहे हो।कहीं ऐसा तो नहीं कि आपकी सारी बोगस वोट जा रही है कूड़े में।ये दोगलापंथी समझ से परे है। इसीलिए अधिकांश जनता इनके खिलाफ है। क्योंकि आज का विपक्ष जितना भी अधिप्रचार कर रायता फैलाया सब बदबूदार था।जिसे जनता ने पानी डालकर साफ कर दिया। इसीलिए भय से ए सब अदालत नहीं जा रहे।जानते हैं कि कोई सबूत नहीं है।फिर भी आदत से मजबूर ए सब अधिप्रचार में लगे हैं।
आज का विपक्ष देश के लिए कभी खड़ा नहीं दिखा।जब खड़ा हुआ तो देश के विरुद्ध ही खड़ा मिला।कभी पाक के पक्ष में तो कभी चीन के पक्ष में। आंदोलन किया धरना किया तो भ्रष्टाचारियों के पक्ष में।मुकदमा लड़ा तो भ्रष्टाचारियों का।रोया तो आतंकवादियों के लिए। काश्मीर में भारतीय बेगुनाह रोज आतंकवादियों के शिकार होते थे।तो कभी भी सदन में काली पट्टी बाॅंध कर नहीं गये।फिलिस्तीन के लिए गये।समझ में नहीं आता कि यह भारत का विपक्ष है या फिलीस्तीन का।भारत सरकार ने पहलगाम कांड का बदला आपरेशन सिंदूर नाम से चलाकर पाक की बैंड बजा दी।और सीजफायर करके देश को एकदम सुरक्षित कर लिया।देश की भारी क्षति होने बचा लिया।तो विपक्ष को पीड़ा इस बात की हो रही है कि अपना नुकसान इतना कम कैसे हुआ।जबकी पाकिस्तान तो लगभग बरवाद हो गया।इस बात का अधिप्रचार कर यह सिद्ध कर रहे हैं कि इनको देश से सब लेना है देश को देना कुछ नहीं है।इनके अधिप्रचार का जनता भी गजब जवाब देती है।जिससे ये तिलमिला जाते हैं।फिर अधमरे साॅंप की तरह फुफकारने से बाज नहीं आ रहे।और अधिप्रचार में शिद्दत से लगे हैं।
जनता समझ चुकी है।आज के विपक्ष को पूरी तरह नकार चुकी है।आज का विपक्ष विपक्ष न तो विकास के साथ है।न देश के साथ है।और न ही जनता के साथ।आज का विपक्ष आतंकवादियों के साथ है। देशद्रोहियों के साथ है। भ्रष्टाचारियों के साथ है।ऐसा जनता इसलिए कह रही है।कि २०१४ के बाद विपक्ष ने सदन से लेकर सड़क तक जितने मुद्दे लेकर बवाल काटी।सब देशविरोधी रहे।चाहे राफेल डील रही हो।चाहे अडानी अम्बानी रहे हों।चाहे आपरेशन सिंदूर रहा हो।विपक्ष आपरेशन सिंदूर की विजय से खुशी आज भी नहीं है।आज भी विपक्ष आपरेशन सिंदूर में ढूॅंढ़ रहा है कि हमने पाकिस्तान के सैकड़ों आतंकवादियों को मार दिया।उनके सभी पनाहगाहों को मिट्टी में मिला दिया।उनके परमाणु ठिकाने तक ध्वस्त कर दिया।और हमारा कुछ नहीं बिगड़ा।ये भारत की विजय से बहुत दुखी दिख रहे हैं।ये सेना के शोर्य से इसलिए भी दुखी हैं कि सेना तो वही २०१४ के पहले वाली है
जो अपनी ही सुरक्षा नहीं कर पाती थी।आज वही सेना इतनी मजबूत और चतुर कैसे हो गई।कि युद्ध भी जीत ली।और खरोंच तक नहीं आई।साॅंप भी मार दी और लाठी में लचक तक नहीं आई।लाठी में लचक क्यों नहीं आई यह पता लगाने के लिए संसद वाधित करते रहे। आतंकी ही क्यों मारे।आमजन को कोई हानि क्यों नहीं पहुॅंचाये। भ्रष्टाचारियों को ही क्यों पकड़ते हो।उनके यहाॅं ही क्यों छापे मरवाते हो।इस तरह के सवाल विपक्ष संसद में उठाकर देश की जनता और देश को भ्रमित करते हैं। चोरों लुटेरों के साथ खड़े होकर चमचों के संग देश की ऐसी-तैसी करते हैं।यह सब आज की प्रबुद्ध जनता देख सुन और समझ रही है। इसलिए इनके किसी भी अधिप्रचार पर जनता भरोसा नहीं करती।और इन्हें शिरे से खारिज करती जा रही है।जब तक ये सब अधिप्रचार से उबरेंगे नहीं।जन समर्थन मिलना असम्भव है।इनको यदि शीर्ष पर पहुॅंचना है तो,जनहित की लड़ाई लड़ें। स्वहित छोड़ें। देशहित की बात करें।माना कि आप विपक्षी हैं। विरोध करना आपका अधिकार है।मगर उस अधिकार का उपयोग देश विरोध में मत करिये। जनहित के कार्यों में मत करिए। अधिप्रचार में मत करिए।इससे सत्ता नहीं मिलेगी।यह २१वीं सदी का भारत है।न की १९वीं सदी का।यह अधिप्रचार को नहीं मानता।यह काम को मानता है।
पं.जमदग्निपुरी
सुन्दर आलेख
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