*सुघर सुन्दर सलोना चांद सूरज आसमानी हो।।**------------ एडवोकेट गिरीश कुमार गिरीश*
*सुघर सुन्दर सलोना चांद सूरज आसमानी हो।।*
*------------ एडवोकेट गिरीश कुमार गिरीश*
बिलखते हैं सिसकते नाम लेकर नाद करते हैं।।
अकेले में स्वयं से रात दिन संवाद करते हैं।।
तुम्हारी माँ बहन भाई भतीजे ग़म में डूबे हैं-
विकल परिवार पुरजन और परिजन याद करते हैं।।
सुघर सुन्दर सलोना चांद सूरज आसमानी हो।।
मिटाई जा नहीं सकती युगों तक वो निशानी हो।।
पढ़ेगें लोग सदियों तक भुलाना ग़ैर मुमकिन है-
हमारी ज़िन्दगी की खूबसूरत तुम कहानी हो।।
वो जिसनें पाला पोसा पय पिलाया आंख के तारे।।
जरा सा उससे पूछो स्वप्न जिसके टूटे हैं सारे।।
बुलायेगा मुझे अब कौन माँ कह कर पुकारेगा-
जिउंगी मै भला दुनिया में कैसे प्राण से प्यारे।।
नयन के ज्योति थे तुम चांद सूरज चमकते तारे।।
मगन होती थी मन ही मन निरख कर माँ तुम्हे प्यारे।।
सहोदर मिल नहीं सकता जगत में और सब संभव-
जियेंगे कैसे वो जिनके टुटे अरमान हों सारे।।
उजाला अब कहाँ जीवन की काली रात है छोड़ो।।
न जाने तुम कहाँ हो बस तुम्हारी बात है छोड़ो।।
कठिन है कैसे बतलाऊं समझ में कुछ नहीं आता-
मिला क्या और खोया क्या अलग अनुपात है छोड़ो।।
फिसलती पांव के नीचे जमीं, महसूस होती है।।
अभी सूखे नहीं आंसू नमीं महसूस होती है।।
जहाँ भी हो चले आओ हमारे दिल की महफ़िल में-
मुझे पल पल तुम्हारी ही कमी महसूस होती है।
उंचाई नाप लेते गगन की पर मिल गया होता।।
दुबारा एक मौका और बेहतर मिल गया होता।।
मेरी भी ज़िन्दगी कट जाती मैं भी चैन से जीता-
किसी के दिल में मुझको भी अगर घर मिल गया होता।।
समाई हो मेरे नस नस में सचमुच चेतना हो तुम।।
मेरी निष्ठा मेरा विश्वास श्रद्धा साधना हो तुम।।
हमारी ज़िंदगी हो और जीने का भी मकसद हो-
भजन कीर्तन हमारी आरती आराधना हो तुम।।
मेरी मजबूरी थी वर्ना क्यों तुम को छोड़ आते हम।।
शिकायत है मुकद्दर से क्यों रिस्ता मोड़ आते हम।।
हुई हसरत नहीं पूरी अधूरे हैं मेरे सपने-
अगर बस में मेरे होता,सितारे तोड़ लाते हम।।
-----------गिरीश जौनपुर
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