केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में "भारतीय चिकित्सा पद्धति में महर्षि अगस्त्य मुनि का योगदान "विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन
केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में "भारतीय चिकित्सा पद्धति में महर्षि अगस्त्य मुनि का योगदान "विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन
नासिक। सिद्ध पिंपरी स्थित केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में "भारतीय चिकित्सा पद्धति में महर्षि अगस्त्य मुनि का योगदान "विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अथिति के रूप मे आयुर्वेद महाविद्यालय संघ नासिक के प्रोफ़ेसर एकनाथ कुलकर्णी ने कहा कि शरीर में सभी रोगों का कारण बात पित और कफ है। जिसका निदान भारतीय चिकत्सा पद्धति में है। भारतीय चिकत्सा पद्धति दक्षिण भारत के महर्षि अगस्त्य मुनि को इसका जनक माना जाता है। अगस्त्य मुनि मंत्र दृष्टा थे,जो ऋग्वेद केप्रथम मंडल में 165से 191तक के सुक्तो को बताया था। ऐसा भी कहा जाता है कि बिजली के अविष्कार करने वाले प्रथम ऋषि थे। उनके द्वारा हरितकी तथा रसायन विद्या का ज्ञान गया जो चिकत्सा पद्धति के लिए बहुत बड़ा अविष्कार था। कोरोना वायरस से बचाने के लिए भारतीय चिकत्सा पद्धति के आयुर्वेद तथा योग विज्ञान विश्व के लिए वरदान साबित हुआ। अगस्त्य मुनि ने तमिल भाषा का प्रथम व्याकरण ग्रंथ अगस्तियम संकलित किया था। जिसके कारण उनको तमिल भाषा का जनक भी कहा जाता हैं। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए परिसर के प्रभारी निदेशक प्रोफेसर रामचंद्र जोईसा ने कहा कि आयुर्वेद पद्धति द्वारा चिकस्ता का ज्ञान देने वाला भारत विश्व का गुरु है। आयुर्वेद पद्धति में नाडी द्वारा रोगों की जानकारी कर लेना तथा रोगों का उपचार करना महर्षि अगस्त्य मुनि का आविष्कार था। भारत में ही नहीं विश्व में चिकत्सा पद्धति में बहुत बडा योगदान माना जाता है। इस अवसर पर एक दिवसीय संगोष्ठी में डॉ इन्द्र कुमार मीणा, डॉ संदीप जोशी, डॉ शंकर आंधले, डॉ लक्ष्मेंद्र तथा डॉ रंजय कुमार सिंह ने अपने अपने शोध पत्र द्वारा विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर स्वागत भाषण एवम परिचय शिक्षा शास्त्र विभाग के अध्यक्ष तथा संगोष्ठी के समन्यवक डॉ कुमार द्वारा, धन्यवाद भाषण डॉ संदीप जोशी द्वारा तथा मंच संचालन डॉ दीपांविता दास द्वारा किया गया। इस अवसर पर शिक्षक, कर्मचारी और छात्र उपस्थित थे।
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