हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा गणतंत्र दिवस के अवसर पर विराट कवि सम्मेलन का आयोजन संपन्न*
*हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा गणतंत्र दिवस के अवसर पर विराट कवि सम्मेलन का आयोजन संपन्न*
*दिल्ली दि ग्राम टुडे, विकास मिश्र*
हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा गणतंत्र दिवस के अवसर पर सुप्रसिद्ध हास्य कवि अरुण जैमिनी की अध्यक्षता एवं कुशल कुशलेंद्र के कुशल मंच संचालन में युवा कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस कवि सम्मेलन में कवियों के रूप में अभय सिंह निर्भीक,अमन अक्षर, गौरव दुबे,चराग शर्मा,जतिन जोहर, दमदार बनारसी, सुश्री पद्मिनी शर्मा, सुश्री मन्नू वैशाली, राज किशोर शर्मा राज,विकास बोखल,विनीत पांडे,शिखा श्रीवास्तव,स्वदेश यादव,सचिन अग्रवाल एवं सान्या राय ने भाग लिया।कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सचिव, कला संस्कृति भाषा विभाग, दिल्ली सरकार एस. के. जैन एवं विशेष अतिथि के रूप में पदमश्री डॉ सुरेंद्र शर्मा उपस्थित रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्जवलन से किया गया।एस.के. जैन ने अपने भाषण में कहा, गणतंत्र दिवस के अवसर पर युवाओं को अवसर देना जो देश का भविष्य भी है सरहानीय काम है। हिंदी का आदमी के सचिव संजय कुमार गर्ग ने कहा, गणतंत्र दिवस के कवि सम्मेलन में युवाओं का अवसर देना मेरा एक नया प्रयोग है। स्वदेश यादव ने अपने कविता में कहा,भले ही रंग मस्ती का घुला हुआ साथ में होगा,जवानी की कुमारी का नशा भी साथ में होगा। मगर जब बात होगी देश हित कुछ कर दिखाने की कफन सर पर वतन दिल में और तिरंगा हाथ में होगा।सान्या राय ने अपने गीत में कहा, जाते-जाते मान लो ना एक ही इच्छा हमारी, रहने देते हैं चलो ना कुछ मुलाकातें उधारी।अभय सिंह निर्भीक ने भारत भ्रमण की कविता सुनाते हुए कहा, आओ हम सब भारत घूमें,इसकी पवन राज को चूमे।अमन अक्षर ने अपने गीत के माध्यम से कहा, हम यहां तक अचानक नहीं आए हैं, हमको जीने का अभिनय नहीं आएगा।।गौरव दुबे ने कहा,जाने अनजाने हुई जानकी से एक भूल,गम के समुद्र आंसुओं से पाटने पड़े। बनवास के दिनों में स्वर्ण मृग चाह बनी,बिरहा की वेदना में दिन काटने पड़े।चिराग शर्मा ने अपने शायरी में कहा, मैं दिल की बातों में आ गया और उठा लाया उसकी पायल, दिमाग देता रहा सदाएं चराग रख दे रख दे।
जतिन चौहान ने दोहों से कविता का आरंभ किया, कि तुम पर जो शोभित करूं, फूलों का उपमान, मुरझा ना जाए कहीं तू भी उसी समान।दमदार बनारसी में दमदार तरीके से अपने हास्य को प्रस्तुत किया।पद्मिनी शर्मा ने श्रृंगार की कविता सुनाते हुए कहा, गीत छंदों की शाम लिख जाऊं, जिंदगानी तमाम लिख जाऊं। हो अगर आपकी इजाजत तो, आपके दिल पे नाम लिख जाऊं।
मन्नू वैशाली ने अपनी श्रृंगार कविता में कहा, नैनन को मीच मीच नैन कोर खींच खींच मोटी कजरार धार कर मोहिनी। मुस्काय मन ही मन और मन ही मन में मीत संग मीठी मीठी मोहन मनोहर कर मोहिनी।राज किशोर शर्मा राज ने एक कृषक किस प्रकार बेचैनी से बादल के बरसाने का इंतजार करता है उसकी भावना को कविता के रूप में प्रस्तुत किया।विकास बौखल व विनीत पाण्डेय ने हास्य में कविता से दर्शकों को खूब हँसाया।शिखा श्रीवास्तव ने अपने गीत में कहा,प्यार हमसे करो तो निभा देंगे हम, तेरे होके सभी को भुला देंगे हम। तेरे माथे चंदन लगाएंगे और तेरे हाथों में राखी भी बांधेंगे हम।सचिन अग्रवाल ने शायरी में कहा, मेहनतकशों की सख्त हथेली से कट गई, दीवार जो कुएं की थी रस्सी से कट गई।कार्यक्रम के अंत में अरुण जैमिनी अपने युवा समय की कविता को सुनते हुए कार्यक्रम का समापन किया।
अंत में हिंदी अकादमी के उपसचिव,ऋषि कुमार शर्मा ने सभी उपस्थित दर्शकों,कवियों साहित्यकारों, पत्रकारों और अतिथियों का आभार व्यक्त किया। ऋषि कुमार शर्मा का हिंदी साहित्य के प्रति समर्पण भाव और योगदान सराहनीय,अतुलनीय और अनुकरणीय है।
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